रायपुर, 26 फरवरी। छत्तीसगढ़ के रायपुर में कांग्रेस महाधिवेशन के आखिरी दिन राहुल गांधी ने संबोधित किया। उन्होंने अधिवेशन को संबोधित करते हुए कहा कि चार महीने कन्याकुमारी से श्रीनगर तक भारत जोड़ो यात्रा हमने की। वीडियो में आपने मेरा चेहरा देखा, लेकिन मेरे साथ लाखों लोग चले थे। हर राज्य में चले। बारिश में गर्मी में, सर्दी में एक साथ हम सब चले। बहुत कुछ सीखने को मिला। अभी में जब वीडियो देख रहा था तो मुझे बातें याद आ रही थीं। वीडियो में आपने देखा होगा, पंजबा में एक मैकेनिक आकर मुझ से मिला। सालों की जो उसकी तपस्या थी, सालों का जो उसका दर्द था, जैसे ही मैंने उसके हाथ पकड़े, मैंने उसकी बात पहचान ली। वैसे ही लाखों किसान जैसे ही हाथ पकड़ते थे, जैसे ही गले लगते थे। एक ट्रांसमिशन सा हो जाता था। शुरूआत में बोलने की जरूरत होती थी। क्या करते हो, कितने बच्चे हैं। क्या मुश्किलें है। यह एक डेढ़ महीना चला। उसके बाद बोलने की जरूरत नहीं पड़ती थी। जैसे ही हाथ पकड़ा, गले लगे, सन्नाटे में एक शब्द नहीं बोला जाता था। मगर जो उनका दर्द था, उनकी मेहनत थी, एक सेकेंड में मुझे समझ आ जाया करती थी। उनसे जो मुझे कहना होता था बिना कुछ बोले वह समझ जाते थे।

राहुल गांधी ने कहा, “आपने वह बोट देखी होगी, केरल में। उस समय में जब में नाव में बैठा था। पूरी टीम के साथ था, मेरे पैर में भयंकर दर्द था। मैं उस फोटो में मुस्कुरा रहा हूं, लेकिन उस समय मुझे रोना आ रहा था। इतना दर्द था। मैंने यात्रा शुरू की, काफी फिट आदमी हूं। 10-12 किलोमीटर ऐसे ही दौड़ लेता हूं। घमंड था, मैंने सोचा था कि 10-12 किलोमीटर चल लेता हूं। तो 20-25 किलोमीटर चलने में कौन सी बड़ी बात है। मेरे दिमाग में यह बात थी। पुरानी चोट थी। कॉलेज में चोट लगी थी फुटबॉल खेलते समय। मैं दोड़ रहा था कि मेरे दोस्त में पीछे से अड़ंगी मार दी और घुटने में चोट लगी। दर्द गायब हो गया था सालों के लिए। और अचानक जैसे मैंने यात्रा शुरू की दर्द वापस आ गया। आप मेरे परिवार हो तो मैं आप से कह सकता हूं। सुबह उठता था तो सोचता था कि कैसे चला जाए, फिर उसके बाद सोचता था कि 25 किलोमीटर नहीं, 3500 किलोमीटरर चलना है कैसे चलूंगा। और फिर कंटेनर से उतरता था और चलना शुरू करता था। लोगों से मिलता तो पहले 10-15 दिन में जिसको अहंकार कह सकते हो, घमंड कह सकते हो वह सारा गायब हो गया। क्यों गायब हुआ? क्योंकि भारत माता ने मुझे मेसेज दिया कि देखो अगर तुम कन्याकुमारी से कश्मीर चलने निकले हो तो अपने दिल से अहंकार मिटा दो, घमंड मिटाओ नहीं तो मत चलो। मुझे यह बात सुननी पड़ी, मुझमें इतनी शक्ति नहीं थी कि में इस बात को ना सुनूं। और धीरे-धीरे मैंने यह ध्यान दिया कि मेरी आवाज चुप होती गई। पहले किसान से मिलता था में उसको अपने ज्ञान समझाने की कोशिश करता था, थोड़ी बहुत मुझमें जो जानकारी है, खेती के बारे में, मनरेगा के बारे में खाद के बारे में, में कहने की कोशिश करता था। धीरे-धीरे यह सब बंद हो गया। शांति सी आ गई। और सन्नाटे में सुनने लगा। यह धीरे-धीरे बदलाव आया। और जब में जम्मू-कश्मीर पहुंचा तो में बिलकुल चुप हो गया।

कांग्रेस सांसद ने आगे कहा, ” मेरी मां मंच पर यहीं बैठीं हैं, मैं छोटा सा था 1977 की बात है। चुनाव आया, मुझे चुनाव के बारे में मालूम नहीं था। मैं 6 साल का था। एक दिन घर में अजीब सा माहौल था। मैं मां के पास गया, मैंने मां से पूछा कि मां क्या हुआ? मां ने कहा कि हम घर छोड़ रहे हैं। तब तक मैं सोचता था कि वह घर हमारा था। मैंने अपनी मां से पूछा कि मां हम अपने घर को क्यों छोड़ रहे हैं? पहली बार मेरी मां ने मुझे बताया कि यह घर हमारा नहीं है। यह सरकार का घर है, अब हमें यहां से जाना है। मैंने मां से पूछा कि हमें कहां जाना है। उन्होंने कहा कि नहीं मालूम कहां जाना है। मैं हैरान हो गया। मैंने सोचा था कि वह हमारा घर था। 52 साल हो गए मेरे पास घर नहीं है। आज तक घर नहीं है। हमारे परिवार का जो घर है। वह इलाहाबाद में है। वह भी हमारा घर नहीं है। जो घर होता है उसके साथ मेरा अजीब सा रिश्ता है। में 12 तुगलक लेन में रहता हूं। लेकिन मेरे लिए वह घर नहीं है।”

राहुल गांधी ने कहा, “जब मैं कन्याकुमारी से निकला, मैंने अपने आप से पूछा कि मेरी जिम्मेदारी क्या बनती है। अब में चल रहा हूं भारत का दर्शन करने निकला हूं, हजारों लाखों लोग निकले हैं। मेरी क्या जिम्मेदारी है? मैंने थोड़ी देर सोचा, फिर मेरे दिमाग में एक आइडिया आया। मैंने अपने दफ्तर के लोगों को बुलाया, जो मेरे साथ चल रहे थे। मैंने उनसे कहा, देखिए यहां पर हजारों लोग चल रहे हैं। धक्का लगेगा, लोगों को चोट लगेगी, बहुत भीड़ है। हमें एक काम करना है। मेरे साइड में मेरे सामने, मेरे आस पास 20-25 फीट जो खाली जगह, जिसमें हिदुस्तान के लोग आएंगे, हमसे मिलने आएंगे। अगले चार महीने के लिए वह हमारा घर है। यह घर हमारे साथ चलेगा। सुबह 6 से शाम 7 बजे तक हमारे साथ चलेगा। मैंने सबसे कहा कि देखिए इस घर में जो भी आएगा, अमीर हो, गरीब हो, बुजुर्ग हो, युवा हो, बच्चा हो, किसी धर्म का हो, किसी भी राज्य का हो, हिंदुस्तान से बाहर का हो। जानवर हो, उसको यह लगना चाहिए कि में आज अपने घर आया हूं। जब वह यहां से जाए उसे लगना चाहिए कि में अपने घर को छोड़कर जा रहा हूं। छोटा सा आइडिया था, उसकी गहराई तब मुझे समझ नहीं आई, जैसे ही मैंने यह किया, जिस दिन मैंने यह किया उस दिन यात्रा बदल गई। जादू से बदल गई। लोग मेरे साथ राजनीतिक बात नहीं कर रहे थे। मैंने क्या क्या सुना में आपको बता भी नहीं सकता हूं। हिंदुस्तान की महिलाओं ने इस देश के बारे में क्या कहा में आपको बता नहीं सकता हूं। युवाओं के दिल में दर्द क्या है और कैसा है में आपको बता नहीं सकता। कितना बोझ उठा रहे हैं वो।”

कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष ने कहा, “एक मिसाल देता हूं, पता नहीं आपने शायद नहीं देखा हो, हम सुबह- सुबह चल रहे थे। साइड में एक महिला भीड़ में खड़ी थी। झिझक के उसने मेरी तरफ देखा। मैंने जैसे ही उसे देखा, उसे बुलाया। मेरे पास आई, मैंने उसे पकड़ा, मुझे एकदम लग गया कि उसके सात कुछ ना कुछ गलत हुआ है। जैसे में प्रियंका का हाथ पकड़ता हूं वैसे ही मैंने उसका हाथ पकड़ा था। कोई फर्क नहीं। मैंने उस समय चोचा यह मेरी बहन नहीं है, यह मैं क्या कर रहा हूं, जो मेरा प्यार मेरी बहन के लिए है मैं इसे दे रहा हूं, अजीब सा लगा। मेरा हाथ पकड़कर उसने कहा कि राहुल जी मैं आपसे मिलने आई हूं। मैंने पूछा क्या बात है, उसने कहा कि मेरा पति मुझे पीट रहा है। मैंने पूछा कब, उसने कहा कि अभी. में घर से भागी हूं। तो मैंने कहा कि पुलिस को बुलाएं, तो उसने कहा कि पुलिस को मत बुलाइए। उसने कहा कि अब में वापस फिर से पिटने जा रही हूं। मैं आपकी सिर्फ यह बताना चाहती थी कि मेरे साथ क्या हो रहा है। यह महिला अकेली नहीं। ऐसी लाखों करोड़ों महिलाएं इस देश में हैं। यात्रा के दौरान यह सब मुझे सुनने को मिला। इस घर को हम धीरे-धीरे जम्मू-कश्मीर तक ले गए।”

राहुल गांधी ने कहा, “जम्मू-कश्मीर से मेरा परिवार सालों पहले आया। मैंने सोचा कि अजीब सी बात है कि कन्याकुमारी से कश्मीर तक इस छोटे से घर को ले जा रहा हूं। यहां मुझे लग रहा है कि में वापस अपने घर को जा रहा हूं। कश्मीर में हम घुसे, वेली से पहले बर्फ है, धूप है, जैसे आज और हजारों लोग हमारे साथ चल रहे थे। एक लड़का मेरे पास आया, मेरे साथ चला। उसने मुझसे कहा कि राहुल जी में आप से एक सवाल पूछना चाहता हूं। मैंने पूछा क्या? उसने कहा कि राहुल जी जब कश्मीक के लोगों को दुख होता, जब हमारे दिल में चोट लगती है तो बाकी हिंदुस्तान के लोगों को खुशी क्यों होती है? मैंने कहा कि गलतफहमी में हो, ऐसी कोई बात नहीं है। में कन्याकुमारी से यहां तक आया हूं। में दावे के साथ यह कह सकता हूं कि करोड़ों लोगों के दिल में यह भावना नहीं है। करोड़ों लोग हर हिंदुस्तानी के दर्द के साथ खड़े हैं। चुने हुए लोग हैं जो खुश होते हैं। हजारों में होंगे, लेकिन हिंदुस्तान में करोड़ों लोग हैं। लड़के ने मेरी आंख से आंख मिलाया और कहा कि राहुल जी आपने मुझे खुश कर दिया। लड़के से बात करते हुए में देख रहा था कि चारों ओर तिरंगा नजर आ रहा था। हम वेली में घुसे। वेली में घुसते ही बादल छा गए। धूप गायब हो गई। जैसे ही हम घुसे पुलिस वालों ने हमसे कहा था कि दो हजार लोग आएंगे। जैसे ही हम घुसे वहां 40 हजार लोग आ गए। जैसे ही पुलिस वालों ने 40 हजार लोगों को देखा वह रस्सी छोड़कर भाग गए। सब पुलिस वाले गायब हो गए। में देख रहा था कि हिंदुस्तान के सबसे आतंकी प्रभावित इलाके में चारों तरफ तिरंगा नजर आ रहा था। कोन तिरंगा उठाए हुए था? कश्मीर के लोगों ने तिरंगा उठा रखा था, हम यात्री तो सिर्फ 125 थे। हजारों कश्मीरी लोगों ने तिरंगा उठा रखा था। यही कहानी पूरे कश्मीर में देखने को मिली। सीआरपीएफ के लोग कह रहे थे कि हमने यह जिंदगी में नहीं देखा है।

कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष ने कहा, “फिर मैंने आया और संसद में प्रधानमंत्री जी का भाषण सुना। कहते हैं कि मैंने भी जाकर लाल चौक पर तिरंगा फहराया था। मैं सुन रहा था। मैंने सोचा, देखिए, हिंदुस्तान के प्रधानमंत्री को बात समझ नहीं आई। नरेंद्र मोदी जी ने बीजेपी के 15-20 लोगों के साथ जाकर लाल चौक पर तिरंगा फहराया। भारत जोड़ो यात्रा ने लाखों कश्मीरी युवाओं के हाथों से तिरंगा फहराया। हमने हिंदुस्तान की भवना, इस झंडे की भवना, जम्मू-कश्मीर के युवाओं के अंदर डाल दी। आप अपने झंडे की भावना जम्मू-कश्मीर के युवाओं से छीन ली। यह फर्क है हम में और आप में। यह जो झंडा है, यह जो तिरंगा है, दिल की भावना है, यह दिल के अंदर से आती है। हमने इस भावना को कश्मीर के युवाओं के दिल में जगाया। हमने किसी से आने के लिए नहीं कहा, वह अपने आप आए, हजारों लाखों आए और हाथ में तिरंगा उठाकर चले। क्यों चले? में आपको बताता हूं, कश्मीरी युवा ने मुझसे कहा कि राहुल जी आज में आपके साथ तिरंगा लेकर चल रहा हूं, जानते हैं क्यों, उसने कहा कि आपने हम पर और मुझ पर भरोसा किया है। आपने अपना दिला हमारे लिए खोला, हम अपना दिल आपके लिए खोलेंगे। यह फर्क है, हिंदुस्तान एक भावना है, एक सोचने का तरीका है, इज्जत है, आदर है, मोहब्बत है। और जो यह जो तिरंगा इसका वह चिन्ह है। इस भारत जोड़ो यात्रा ने इस भावना को पूरे देश में फैलाया है। यह काम राहुल गांधी ने नहीं किया है। यह काम कांग्रेस के नेताओं और कार्यकर्ताओं ने किया है और हिंदुस्तान की जनता ने किया है।”

अधिवेशन को संबोधित करते हुए राहुल गांधी ने केंद्र की मोदी सरकार पर निशाना साधा, उन्होंने कहा, “सरकार की सोच के बारे में आपको बताना चाहता हूं। कुछ दिन पहले इंटरव्यू में एक मंत्री ने कहा कि चीन की अर्थव्यवस्था हिंदुस्तान की अर्थव्यवस्था से बड़ी है तो हम उनसे कैसे लड़ सकते हैं। जब अंग्रेज हम पर राज करते थे तो क्या उनकी अर्थव्यवस्था हमारी अर्थव्यवस्था से छोटी थी? इसका मतलब कि जो आप से शक्तिमान है उससे लड़ों ही मत, जो आपसे कमजोर है उससे लड़ो। इसको कायरता कहा जाता है। सावरकर की विचारधारा है, अगर आपके सामने तगड़ा है तो उसके सामने सिर झुका दो।”

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