मुंबई। अंतिम : द फाइनल ट्रुथ… कहानी राजनीति के साथ जुर्म के गठजोड़ की है, जहां कुछ भू-माफिया किसानों की ज़मीन पर कब्ज़ा कर रहे हैं। पॉवर और पैसे के गठजोड़ का शिकार हो रहे हैं किसान। पहले ही सीन से दिखाया जाता है कि राहुल अपने किसान पिता सत्या को भू-माफियाओं से बचाने की कोशिश करता है और फिर उसकी ज़मीन भी छिन जाती है। बेरोज़गार राहुल ज़ुर्म के खिलाफ़ चुप नहीं बैठता, बल्कि खुद जुर्म के दलदल में उतर जाता है और देखते ही देखते वो पूणे का सबसे ख़तरनाक गैंगस्टर – राहुल्या बन जाता है। राहुल्या पर हाथ है पूणे के सबसे बड़े डॉन नान्या भाई का। फिर शुरु होता खूनी सिलसिला, जिसे रोकने के लिए एंट्री होती है इंस्पेक्टर राजवीर सिंह की।

अब यहां ट्विस्ट है कि कहानी देखते ही समझ आता है कि सलमान ने इस फिल्म में जीजा को जगह देने के लिए खुद को पीछे रखा है। यानि इंस्पेक्टर राजवीर दिमाग़ से ज़्यादा खेलता है, डॉयलॉग बाज़ी करता है, लेकिन एक्शन में आने के लिए सेकेंड हॉफ़ का इंतज़ार करता है।

ये बात सलमान के फैन्स को खटकेगी ज़रूर। पिटता हुआ भाई किसे पसंद है। हांलाकि सलमान ने क्लाइमेक्स में एक्शन की सारी कसर पूरी कर दी है, लेकिन ख़ास तौर पर सलमान फैन्स को ये पचने वाला नहीं है। खैर 80’s के फॉर्मूले वाली इस फिल्म में वो सब कुछ है, जो इसे मास फिल्म बनाता है। बस कहानी में थोड़ी धार, थोड़ी रफ्तार और होती तो ये टिपिकल सलमान फिल्म ना बनती।

अब चुकी ये फिल्म मराठी रीमेक है, पूणे में बेस्ड है… तो इसमें असर भी वही दिखता है। महाराष्ट्र के गांव और शहरों की ज़िंदगी और डिफरेंस को सिनेमैटोग्राफर करण रावत के कैमरे ने अच्छे से कैप्चर किया है। शहरों में बदल रहे गांवों की ये तस्वीर आपको रियलिस्टिक लगेगी। गाने फिल्म में ज़बरदस्ती ठूसे लगते हैं वो कहानी के फ्लो के मुताबिक जाते नहीं। हांलाकि अलग-अलग गानों को सुनिए, तो वो मेलोडियस हैं।

मराठी फिल्मों के बड़े एक्टर सचिन खेडेकर और उपेन्द्र लिमये भी अंतिम का हिस्सा हैं, जो फिल्म के ग्राफ़ को बढ़ाते हैं। लेकिन सच तो ये है कि फिल्म में इतने कैरेक्टर हैं, कि अंतिम भटकने लगती है। खैर अंतिम अपना मकसद पूरा करती है, सलमान के जीजा – आयुष को स्टैंड आउट करने में। राहुल्या के किरदार के लिए आयुष ने मेहनत भी काफ़ी की है। लवयात्रि से लेकर अंतिम तक आपको आयुष के अपीयरेंस में, एक्सप्रेशन्स में ज़मीन आसमान का अंतर नज़र आएगा।

डेब्यूटेंट महिमा मखवाना, जो राहुल्या की लव इंट्रेस्ट मांडा का कैरेक्टर प्ले कर रही हैं, उन्हे भी अच्छा स्क्रीन स्पेस मिला है। महिमा की परफॉरमेंस भी अच्छी है, लेकिन आयुष के साथ उनकी केमिस्ट्री में स्पॉर्क नज़र नहीं आता। मांडा के शराबी पापा के कैरेक्टर में महेश मांजरेकर ज़रूर जमते हैं।

और सलमान का क्या कहना। पुलिस वाले का कैरेक्टर तो उन्होने इतना कर लिया है, कि अब तो उन्हे रूल बुक भी याद हो गई। सिख पुलिस इंस्पेक्टर के कैरेक्टर से लेकर शर्ट के बटन टूटने तक देर भले ही लगी हो, लेकिन सलमान ने इस फिल्म में आयुष को चमकने का मौका दिया है। और आख़िरी में सारी कसर पूरी कर ली है।

फाइनली, अगर आप भाई के फैन हैं या फिर पुरानी मसाला फिल्मों के शौकीन हैं तो ये फिल्म आपके लिए है। हांलाकि ये टिपिकल सलमान ख़ान फिल्म नहीं है, इसमें कहानी भी है।

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