प्रल्हाद जोशी ने कहा- कोयले के इस्तेमाल में कमी लाने की कोई योजना नहीं, कॉप-26 जलवायु सम्मेलन में पीएम ने कार्बन उत्सर्जन में कमी की प्रतिबद्धता दोहराई थी

ग्लास्गो में आयोजित कॉप-26 जलवायु सम्मेलन में प्रधानमंत्री ने साल 2030 तक भारत कुल अनुमानित कार्बन उत्सर्जन में एक बिलियन टन की कमी करेगा, यह प्रतिबद्धता दोहराई थी।

नई दिल्ली, 06 दिसम्बर। ग्लास्गो में आयोजित कॉप-26 जलवायु सम्मेलन में प्रधानमंत्री ने साल 2030 तक भारत कुल अनुमानित कार्बन उत्सर्जन में एक बिलियन टन की कमी करेगा, यह प्रतिबद्धता दोहराई थी। इधर, 29 नवम्बर, 2021 को राज्यसभा में कोयले के इस्तेमाल को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने की योजना संबंधी सवाल किया गया था। इस पर केन्द्रीय कोयला मंत्री ने जो लिखित जवाब दिया, वो कॉप-26 जलवायु सम्मेलन में कार्बन उत्सर्जन में कमी लाने संबंधी प्रतिबद्धता के विपरित है।

कोयला मंत्री ने सदन में कहा था कि, ‘कोयला भारत में अत्यधिक महत्वपूर्ण और प्रचुर मात्रा में उपलब्ध जीवाश्म ईंधन है और देश की 55 प्रतिशत ऊर्जा आवश्यकता को पूरा करता है। गत चार दशकों में भारत में वाणिज्यिक के प्राथमिक ऊर्जा खपत में लगभग 700 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। भारत में वर्तमान प्रति व्यक्ति वाणिज्यिक प्राथमिक ऊर्जा खपत लगभग 350 पीजीआई/वर्ष है। कोयला देश में ही ऊर्जा का प्राथमिक स्रोत नहीं है बल्कि बात इस्ताप, स्पंज आयरन, सीमें, कागज, ईंट भट्टों आदि जैसे अनेक उद्योगों जैसे द्वारा एक इंटरमीडियरी के रूप में भी उपयोग किया जाता है। इसी प्रकार कोयले का उपयोग करने वाले उद्योगों की वृद्धि के साथ कोयले के लिए उनकी मांग की बढ़ रही है। इसलिए हाल के वर्षों में कोयले की मांग में समग्र वृद्धि हुई है। पर्याप्त रिजर्व के साथ ऊर्जा का एक किफायती स्रोत होने के कारण कोयला निकट भविष्य में ऊर्जा के एक मुख्य स्रोत के रूप में रहेगा। अक्षय स्रोतों को बढ़ावा देने के बावजूद देश को स्थिरता तथा सुरक्षा के लिए कोयला आधारित उत्पादन की आधार भार क्षमता की आवश्यकता होगी’।

कॉप-26 में पीएम मोदी ने यह कहा था

ग्लास्गो में आयोजित कॉप-26 में राष्ट्रीय वक्तव्य देते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दुनिया को याद दिलाया था कि दुनिया की कुल आबादी का 17 फीसद होने के बावजूद कुल उत्सर्जन में भारत की हिस्सेदारी केवल 5 प्रतिशत है। कॉप- 26 के मंच से प्रधानमंत्री ने पंचामृत को को लेकर अपनी प्रतिबद्धता की घोषणा की थी :

  •  साल 2030 तक भारत गैर-जीवाश्म ऊर्जा क्षमता 500 गीगावाट पर लाएगा।
  • साल 2030 तक भारत, अपनी अर्थव्यवस्था की कार्बन इंटेन्सिटी में 45 प्रतिशत की कमी लाएगा। और पांचवा- वर्ष 2070 तक भारत, नेट जीरो का लक्ष्य हासिल करेगा
  • भारत साल 2030 तक अपनी 50 प्रतिशत ऊर्जा जरूरत अक्षय ऊर्जा स्रोतों से पूरी करेगा।
  • साल 2030 तक भारत कुल अनुमानित कार्बन उत्सर्जन में एक बिलियन टन की कमी करेगा।
  • साल 2070 तक भारत नेट-जीरो का लक्ष्य हासिल करेगा।

बिजली संयंत्रों से प्रदूषण, विश्व में हर साल 8 लाख लोगों की होती है मौत

जीवाश्म ईंधन और बायोमास से चलने वाले बिजली संयंत्रों से कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ2) उत्सर्जन को कम करने से अक्सर वायु प्रदूषण भी कम होता है। जिससे जलवायु और सार्वजनिक स्वास्थ्य दोनों को फायदा होता है। शोधकर्ताओं ने जलवायु-ऊर्जा नीति परिदृश्यों को देखते हुए दुनिया भर में अलग-अलग तरीके से बिजली पैदा करने वाली इकाइयों की मॉडलिंग करके जलवायु और स्वास्थ्य के संबंधों की गहन पड़ताल की है।

उन्होंने पाया कि हर साल कोयला अधारित संयंत्र से होने वाले प्रदूषण की वजह से 8 लाख से अधिक लोग समय से पहले मर जाते हैं। उन मौतों में से लगभग 92 प्रतिशत कम आय वाले देशों में हैं, विशेष रूप से भारत और चीन में, हालांकि दक्षिण पूर्व एशिया, मध्य पूर्व और अफ्रीका में भी ऐसा देखा गया है। यह शोध नेचर क्लाइमेट चेंज जर्नल में प्रकाशित हुआ है।

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