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मुंबई, 20 अगस्त। देश के बैंकों ने हाल के वर्षों में सुशासन के मानदंडों का पालन करने में महत्‍वपूर्ण प्रगति की है लेकिन यह सामाजिक रूप से दक्षतापूर्ण मौजूदा सुशासन संरचना के लिए पर्याप्‍त नहीं है। भारतीय रिजर्व बैंक की अध्‍ययन रिपोर्ट भारत में बैंकों का सुशासन, दक्षता और सुदृढता में यह बात कही गई है।

रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि दीर्घकाल में बैंकों के असफल होने के जोखिम से बचने के लिए कारोबारी प्रक्रियाएं इस तरह की होनी चाहिए कि उसमें सतत् लाभ सुनिश्चित हो। यह रिपोर्ट 2008-09 से 2017-18 की अवधि के लिए अलग-अलग बैंकों की वार्षिक रिपोर्ट में उपलब्‍ध कॉर्पोरेट सुशासन की जानकारी के विश्‍लेषण पर आधारित है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि 2008-09 से 2012-13 की अवधि में भारतीय बैंक उद्योग तार्किक रूप से काफी मजबूत था, लेकिन 2013-14 में परिसंपत्ति की गुणवत्‍ता और लाभ कमाने की क्षमता में गिरावट के शुरूआती संकेत मिलने लगे थे।

हाल के वर्षों में मोटे तौर पर निजी क्षेत्र के बैंकों ने अपनी मजबूत स्थिति में सुधार दिखाया, लेकिन सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के लिए मजबूती का निम्‍न स्‍तर चुनौती बना रहा है। ऐसा इसलिए हुआ क्‍योंकि इस तरह का रूझान सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के लिए अधिक व्‍यापक था।

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि सुशासन और मजबूती के आयामों पर बैंकों की नीतिगत प्राथमिकताओं में मौजूद विषमताएं देखी जा सकती हैं। अध्‍ययन की अवधि के दौरान जोखिम प्रबंधन और बोर्ड की प्रभावशीलता के कारण निजी क्षेत्र के बैंकों ने लेखा-जांच के कामकाज संबंधी सुशासन के मानदंडों का पालन करने में अपेक्षाकृत बेहतर प्रदर्शन किया है।

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