एसईसीएल की कुसमुंडा खदान में 5 लाख टन कोयला लैप्स होने की कगार पर, डीओ का नहीं किया जा रहा एक्सटेंशन

दुःखद पक्ष यह भी है कि एसईसीएल अपनी इन खामियों के बीच उपभोक्ताओं को जारी डीओ का एक्सटेंशन भी नहीं कर रहा है। एसईसीएल की निरंकुशता का एक सबूत यह भी है कि उपभोक्ताओं के फ्यूल सेल एग्रीमेंट (एफएसए) के अनुरोध को सिरे से खारिज कर दिया गया है।

वैश्विक महामारी कोरोना पर नियंत्रण के बाद देश की अर्थव्यवस्था तेजी से ऊपर जा रही है। उद्योगों में कच्चे माल की मांग तेजी से बढ़ी हैं। ऊर्जा क्षेत्र सबसे तेज गति से वृद्धि कर रहा। परंतु इन सब के बीच आलम यह है कि देश में कोयले के पर्याप्त भंडार के बावजूद उद्योगों को कोयला नहीं मिल रहा है। छत्तीसगढ़ प्रदेश की बात करें तो कोल इंडिया लिमिटेड और उसकी अनुषंगी कंपनी एसईसीएल की मनमानी इस हद तक बढ़ गई है कि कोरबा स्थित कुसमुंडा खदान में उपभोक्ताओं का 5 लाख टन से अधिक कोयला लैप्स होने की कगार पर है।

कहने को तो एसईसीएल की कुसमुंडा खदान ने रोड सेल के अंतर्गत टोकन जारी किए हैं, लेकिन यह टोकन उपभोक्ताओं की जरूरत का महज 10 फीसदी है। एसईसीएल की इस खानापूर्ति के कारण उपभोक्ता अपने डिलिवरी ऑर्डर (डीओ) के अनुरूप अक्टूबर माह के अंत और नवंबर, 2021 के पहले सप्ताह तक कोयला नहीं उठा पाएंगे। नतीजा यह होगा कि उपभोक्ताओं को जारी डीओ लैप्स हो जाएंगे। इस पूरे प्रकरण का महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि डीओ के लैप्स होने का खामियाजा उपभोक्ता तो उठाएंगे लेकिन इसका पूरा फायदा कोल इंडिया और एसईसीएल को होगा।

प्रावधान यह है कि जब कोई उपभोक्ता कोयला खरीद प्रक्रिया में शामिल होता है तब उसे कोयले की मात्रा के आधार पर एक निश्चित राशि जमा करनी होती है। यह राशि अर्नेस्ट मनी डिपॉजिट (ईएमडी) कहलाती है। एसईसीएल उपभोक्ताओं को डीओ इस शर्त पर जारी करता है कि वे जारी डीओ की मात्रा अनुसार एक निश्चित समयावधि के भीतर ही कोयले का उठाव कर सकेंगे। यदि किसी भी वजह से उपभोक्ता निश्चित समय में कोयला नहीं उठा सके तब उपभोक्ता का डीओ लैप्स होता ही है, उनके द्वारा कोल इंडिया लिमिटेड के पास जमा की गई ईएमडी भी जब्त कर ली जाती है।

पिछले एक महीने में अगर कोरबा की बात की जाए, तो कहने को तो यहां एशिया की सबसे बड़ी खदानें हैं परंतु उपभोक्ता एसईसीएल के अनेक हथकंडों के कारण कोयला नहीं उठा पा रहे। हाल ही में नाम मात्र का रोड सेल खदान प्रबंधन ने चालू किया। एसईसीएल द्वारा कभी रोड सेल को बंद किया गया तो कभी अनेक अतार्किक कारणों से खदानें बंद और फिर से चालू की गईं। नतीजा यह हुआ कि उपभोक्ता संकट में हैं। उनको जारी डीओ अगले 10 दिनों में लैप्स हो जाएंगे। इस तरह 5 लाख टन कोयला उपभोक्ताओं तक नहीं पहुंच पाएगा।

दुःखद पक्ष यह भी है कि एसईसीएल अपनी इन खामियों के बीच उपभोक्ताओं को जारी डीओ का एक्सटेंशन भी नहीं कर रहा है। एसईसीएल की निरंकुशता का एक सबूत यह भी है कि उपभोक्ताओं के फ्यूल सेल एग्रीमेंट (एफएसए) के अनुरोध को सिरे से खारिज कर दिया गया है। इसके एवज में एसईसीएल ने ई-ऑक्शन की बात कही थी वह भी पर्याप्त मात्रा में नहीं किया गया। एसईसीएल की अन्यायपूर्ण कार्य शैली के कारण अब उपभोक्ताओं के बुक किए गए कोयला के डीओ निरस्त होने की दिशा में अग्रसर हैं।

कोयले के कारोबार को समझने वाले कुछ जानकार यह बताते हैं कि कोरबा में कुसमुंडा जैसी खदानों का नाम कोल स्टॉक में अनियमितताओं की वजहों से बार-बार सामने आ रहा है। केंद्रीय स्तर पर पहले भी उत्पादन और स्टॉक को लेकर जांच हो चुकी है। अब जबकि सारे अत्याधुनिक संसाधनों और पर्याप्त संख्या में मानव संसाधन होने के बावजूद एसईसीएल उत्पादन आंकड़ों पर खरा नहीं उतर पा रहा ऐसे में पूरे प्रबंधन की कार्य शैली और क्षमताओं पर सवाल उठना लाजिमी ही है।

प्रदेश भर के सीपीपी आधारित उद्योग कोयले की गंभीर कमी से जूझ रहे हैं। ऐसे में छत्तीसगढ़ की भूपेश बघेल सरकार के साथ ही केंद्रीय शासन स्तर पर पर्याप्त सुधारात्मक उपाय अपनाने की जरूरत है। अन्यथा वह दिन दूर नहीं कि जिस छत्तीसगढ़ प्रदेश को इसके गठन के समय से ही देश भर में पावर सरप्लस स्टेट के तौर पर जाना जाता रहा है वह अपनी बनी बनाई साख खो बैठेगा।

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