इन दिनों मेरे शहर की हवा कुछ ठीक नहीं …

इन दिनों मेरे शहर की हवा कुछ ठीक नहीं।
जरा संभल कर घर आना मौसम ठीक नहीं।।

इन दिनों मेरे शहर ….

चारों तरफ धुआं- धुआं सा है जैसे शमशान हो।
भरोसा खुद से ज्यादा किसी पर करना ठीक नहीं।।

इन दिनों मेरे शहर …

आदत है जिनकी झूठ पर झूठ ही बोलना।
उनके सच पर भरोसा करना ठीक नहीं।।

इन दिनों मेरे शहर …

इंतजार में नम हो आती है मां की आंखें।
घर जल्दी लौटूं तो अच्छा बाहर कुछ ठीक नहीं।।

न दिनों मेरे शहर …

हर दिन नयी कहानी नया फसाना हो जाता है।
बोलना जरूरी है वीणा अब चुप रहना ठीक नहीं।।

इन दिनों मेरे शहर …

(कवयित्री वीणा मिस्त्री शासकीय जिला चिकित्सालय, जिला कोरबा (छग) में काउंसलर के पद पर कार्यरत हैं व संगीत और सामाजिक क्षेत्र से भी जुड़ी हुई हैं)

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