कोरबा (आईपी न्यूज)। एक हजार करोड़ रुपए के बजट वाले नगर पालिक निगम, कोरबा में मेयर बनाने की जुगत भाजपा, कांग्रेस दोनों दलोें ने शुरू कर दी है। परिणाम स्पष्ट होने के बाद से ही खासकर निर्दलियोें के मोबाइल देर रात तक घनघनाते रहे। इधर, भाजपा इस पद के सबसे करीब है। पार्टी को केवल 3 पार्षदों के समर्थन की आवश्यकता है। पूर्व संसदीय सचिव लखनलाल देवांगन ने बुधवार को आईपी न्यूज से चर्चा के दौरान कहा कि कुछ निर्दलीय पार्षदों का समर्थन भाजपा को मिलने जा रहा है। ऐसे पार्षदों से चर्चा की गई। श्री देवांगन ने कहा कि पार्टी ने पूरी एकजुटता के साथ चुनाव लड़ा है और पूरी एकजुटता के साथ महापौर बनाएंगे। प्रदेश के राजस्व मंत्री एवं निकाय चुनाव के कोरबा जिला प्रभारी जयसिंह अग्रवाल ने आईपी न्यूज से बातचीत करते हुए कहा कि कोरबा निगम में न ही भाजपा और न ही कांग्रेस को बहुमत मिला है। ऐसे में दोनोे दल महापौर के लिए प्रयास करेंगे। राजस्व मंत्री ने एक सवाल के जवाब में कहा कि भाजपा में कुछ अच्छा नहीं चल रहा। वहां गुटबाजी और आपसी कलह बहुत ज्यादा है। यह स्थिति कोरबा जिले से लेकर पूरे प्रदेश तक है।
भाजपा राजनीतिक गणित में कहीं फेल न हो जाए
निगम, कोरबा में अपनी पार्टी का मेयर बनाने के लेकर भाजपा, कांग्रेस दोनों दलों के नेता सक्रिय हो गए हैं। अंकगणित के लिहाज से भाजपा इसके करीब है, लेकिन राजनीतिक गणित में पार्टी कहीं फेल न हो जाए। भाजपा अपने जीते हुए 31 पार्षदों और निर्दलियों के पाले में आ जाने के भरोसे में है। सवाल यह है कि चुनाव जीतने वाले 5 निर्दलियों में पार्टी को कितने और कौन- कौन समर्थन देगा। 5 निर्दलियों के अलावा दो- दो माकपा एवं छजकां तथा एक पार्षद बसपा का है। बताया जा रहा है कि इन 5 दलीय नेताओं और इनके पार्षदों का रूझान भाजपा की ओर नहीं है। यानि भाजपा को निर्दलीयों के भरोसे ही रहना होगा या फिर कुछेक कांग्रेसी पार्षदों को अपने खेमे में लाना होगा। चुंकि कांग्रेस सत्ता में ऐसे में इसकी उम्मीद कम दिख रही है।
कांग्रेस के लिए भी 34 के आंकड़े पर पहुंचना आसान नहीं
कांग्रेस की नजर में मेयर की कुर्सी है। पार्टी और इसके नेताओं को पूरी उम्मीद है कि वे 26 से 34 के आंकड़े पर पहंुच जाएंगे। माकपा के सपूरन कुलदीप ने स्पष्ट कर दिया है वे वैचारिक तौर पर भाजपा के साथ नहीं जा सकते हैं। यानि माकपा को कांग्रेस को समर्थन देने से कोई गुरेज नहीं होगा। छजकां के दो और बसपा के एक पार्षद भी कांग्रेस के सपोर्ट कर सकते हैं। यदि इनकी संख्या को जोड़ दिया जाएगा तब भी कांग्रेस 31 पर ही आकर रूकती है। ऐसे में पार्टी निर्दलियों का समर्थन लिए बगैर अथवा भाजपा के कुछेक पार्षदों अपने पाले में लाए बगैर मेयर की कुर्सी प्राप्त नहीं कर सकेगी। बहरहाल भाजपा, कांग्रेस दोनों ही दलों के नेताओं ने बहुमत के लिए जोड़ तोड़ की राजनीति षुरू कर दी है। देखना यह होगा कि इसमें सफलता किसे मिलती है। हालांकि मेयर का चुनाव किस तरह होगा, इसको लेकर राज्य निर्वाचन आयोग ने अभी तक को दिशा निर्देश जारी नहीं किए हैं।

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