लखनऊ। पूर्वांचल की विद्युत वितरण व्यवस्था के निजीकरण के विरोध में विद्युत कर्मचारी संगठनों का अनिश्चितकालीन कार्य बहिष्कार खत्म हो गया है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के हस्तक्षेप पर विद्युत कर्मचारी संगठनों के नेताओं के साथ वार्ता में ऊर्जा और वित्त मंत्री ने सभी को आश्वस्त किया कि निजीकरण का प्रस्ताव वापस लिया जाता है। अभियंताओं-कर्मचारियों को विश्वास में लिए बिना निजीकरण नहीं किया जाएगा।

दरअसल, पूर्वांचल विद्युत विरतण निगम लिमिटेड (पीवीवीएनएल) के निजीकरण को लेकर निजीकरण के विरोध में विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति और उत्तर प्रदेश पावर ऑफिसर्स एसोसिएशन ने प्रदेशव्यापी आंदोलन छेड़ रखा था। प्रबंधन के साथ वार्ता विफल रहने पर पांच अक्टूबर यानी सोमवार से बिजलीकर्मियों ने अनिश्चितकालीन कार्य बहिष्कार शुरू कर दिया था। इससे सूबे के बड़े हिस्से की बिजली आपूर्ति लड़खड़ाने पर प्रदेशवासियों की दिक्कतें बढ़ती जा रही थीं। सोमवार देर रात तक ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा की मौजूदगी में प्रबंधन व नेताओं की वार्ता बेनतीजा रहने पर मंगलवार को भी बिजलीकर्मियों का कार्य बहिष्कार जारी रहा।

बिजली की आपूर्ति ठप होने से कई जगह स्थिति बिगड़ते देख मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मंगलवार सुबह ऊर्जा मंत्री और वरिष्ठ अफसरों की बैठक बुलाई। कार्य बहिष्कार समाप्त कराने के लिए मुख्यमंत्री ने एक तरह से कैबिनेट की उप समिति बनाते हुए ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा के साथ ही वित्त मंत्री सुरेश खन्ना को नेताओं से बात करने के लिए कहा। दोपहर तीन बजे विधानभवन स्थित तिलक हाल में वित्त मंत्री ने संघर्ष समिति के पदाधिकारियों को वार्ता के लिए बुलाया। वार्ता में मुख्य सचिव आरके तिवारी, अपर मुख्य सचिव ऊर्जा व कारपोरेशन के अध्यक्ष अरविन्द कुमार आदि भी शामिल हुए। पावर ऑफिसर्स एसोसिएशन के नेताओं के साथ प्रबंधन की वार्ता शक्तिभवन मुख्यालय में हुई।

ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा की मौजूदगी में सोमवार को जिन बिंदुओं पर कर्मचारी नेता राजी थे, उन्हीं पर वित्त मंत्री के साथ बैठक में भी नेताओं ने सहमति जताई। चूंकि कारपोरेशन के अध्यक्ष अरविन्द कुमार ही सोमवार को उन सभी बिन्दुओं पर सहमति न जताते हुए हस्ताक्षर करने को तैयार नहीं थे, इसलिए समझौते के एक बिंदु में बदलाव किया गया। पहले जहां अगले वर्ष 31 मार्च तक मंत्री, प्रबंधन व समिति द्वारा विद्युत व्यवस्था में सुधार की मासिक समीक्षा पर सहमति जताई गई थी, वहीं अब हुए समझौते में 15 जनवरी की तिथि रखी गई है।

इसके पीछे प्रबंधन की मंशा यह है कि यदि तीन माह में सुधार की स्थिति नहीं दिखेगी तो चालू वित्तीय वर्ष में ही 15 जनवरी के बाद निजीकरण की प्रक्रिया शुरू की जा सके। संघर्ष समिति के संयोजक शैलेंद्र दुबे ने बताया कि समझौते के मद्देनजर कार्य बहिष्कार को वापस लेने का निर्णय किया गया है। समझौते पर सहमति जताते हुए पावर एसोसिएशन के अवधेश वर्मा ने भी कहा कि उनका आंदोलन भी स्थगित किया जा रहा है।

सहमति के बिंदु

  • ऊर्जा व वित्त मंत्री का आश्वस्त करना कि पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम व अन्य क्षेत्र के निजीकरण या विघटन के प्रस्ताव को वापस लिया जाता है। इसके अतिरिक्त किसी अन्य व्यवस्था का प्रस्ताव विचाराधीन नहीं है।
  • विद्युत वितरण निगमों की मौजूदा व्यवस्था में ही विद्युत वितरण में सुधार के लिए कर्मचारियों व अभियंताओं को विश्वास में लेकर राजस्व वसूली, बेहतर उपभोक्ता सेवा के लिए मन, वचन एवं कर्म से सार्थक प्रयास किए जाएंगे।
  • कर्मचारियों व अभियंताओं को विश्वास में लिए बिना उत्तर प्रदेश में किसी भी स्थान पर कोई निजीकरण नहीं किया जाएगा।
  • वितरण के क्षेत्र को भ्रष्टाचार मुक्त करने, बिलिंग एवं वसूली का लक्ष्य हासिल करने तथा उपभोक्ताओं को संतुष्ट करने और विद्युत उपकेंद्रों को आत्मनिर्भर बनाने के कार्य में संघर्ष समिति, प्रबंधन का पूरी तरह सहयोग करेगी।
  • अगले वर्ष 15 जनवरी तक प्रतिमाह विद्युत वितरण के क्षेत्र में सुधार की कार्यवाही की ऊर्जामंत्री, प्रबंधन और संघर्ष समिति द्वारा मासिक समीक्षा की जाएगी।
  • वर्तमान आंदोलन के कारण किसी भी कर्मी के खिलाफ दर्ज मुकदमे व अन्य उत्पीड़नात्मक कार्रवाई को बिना शर्त वापस लिया जाएगा।
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