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नई दिल्ली, 27 अक्टूबर। केन्द्र सरकार के विद्युत मंत्रालय (Power Ministry) ने बिजली घरों को विदेशी कोयले (Imported Coal) की खरीद के लिए दबाव बनाया है। इसके लिए देश में सभी राज्यों के ऊर्जा विभाग के अपर मुख्य सचिव एवं प्रमुख सचिव को पत्र भेजा गया है।

पत्र में कुल कोयला खपत का छह फीसदी आयातित कोयले का प्रयोग मार्च 2024 तक करने का निर्देश दिया गया है। विदेशी कोयला खरीद करने संबंधी निर्देश जारी करने की बात सामने आते ही इंजीनियर्स फेडरेशन और उपभोक्ता परिषद ने इसका विरोध किया है।

यहां बताना होगा कि भारतीय कोयले की तुलना में आयातित कोयला करीब छह से 10 गुना तक महंगा होता है। ऐसे में छह फीसदी आयातित कोयले के इस्तेमाल से बिजली की उत्पादन लागत 70 पैसे से 1.10 रुपए प्रति यूनिट तक बढ़ जाएगी, जिसका खामियाजा उपभोक्ताओं को उठाना पड़ेगा। विद्युत मंत्रालय ने बीते साल भी छह फीसदी आयातित कोयले के इस्तेमाल का निर्देश जारी किया गया था।

संगठनों ने किया विरोध, निर्देश वापस लेने की मांग

इधर, ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन के अध्यक्ष शैलेंद्र दुबे ने कहा कि आयातित कोयले की जरूरत ही नहीं है। विद्युत मंत्रालय आदेश वापस ले। अन्यथा आयातित कोयले का अतिरिक्त खर्च केन्द्रीय विद्युत मंत्रालय खुद वहन करे। चालू वित्तीय वर्ष में 21 अक्टूबर तक 7.13 करोड़ टन कोयले का उत्पादन किया गया है, जो पिछले साल से करीब 12.73 प्रतिशत अधिक है। केन्द्रीय विद्युत मंत्रालय, कोयला मंत्रालय और रेल मंत्रालय के मध्य समन्वय की कमी है, जिसके चलते ताप बिजली घरों तक कोयला नहीं पहुंच पा रहा है।

राज्य उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने कहा कि विद्युत मंत्रालय की ओर से आयातित कोयला खरीदने का आदेश उपभोक्ता विरोधी है। देशी कोयले की कीमत 3000 रुपए प्रति टन है, जबकि विदेशी की कीमत करीब 20000 रुपए प्रति टन है। पहले भी परिषद के विरोध की वजह से विदेशी कोयले की खरीद नहीं हुई थी। जरूरत पड़ी तो पूरे मामले को लेकर याचिका दायर की जाएगी। उन्होंने कहा कि जब भी आयातित कोयले के जरिए निजी घराने नए तरीके का दबाव बनाते हैं। वे एक फीसदी विदेशी कोयला खरीद कर अधिक मात्रा में दिखाते हैं। उसी आधार पर बिजली की दरें भी बढ़ती रहती है। इसका खामियाजा उपभोक्ताओं को भुगतना पड़ता है।

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