कोरबा (IP News).  तमाम विरोध के बीच केन्द्र सरकार ने भी ठान ली है कि कमर्शियल माइनिंग के फैसले को उसके परिणाम तक पहुंचाना है। इधर, कोयला मंत्री प्रल्हाद जोशी के झारखण्ड और छत्तीसगढ़ के दौरे ने इस पर अंतिम मुहर लगा दी है। श्री जोशी का यह दौरा केन्द्र सरकार की मंशा के अनुरूप काफी हद तक सफल रहा है। रायपुर में कोयला मंत्री ने मीडिया से चर्चा के दौरान यह बात कही कि प्रधानमंत्री ने कहा है कि कमर्शियल माइनिंग को सफल करना है और इसी मकसद से उन्हें दोनों राज्य सरकारों के पास भेजा गया है।

कोयला मंत्री के आगमन और झारखण्ड को जमीन की कीमत की बकाया रकम में से 250 करोड़ रुपए का चेक देना एक रणनीति का हिस्सा ही था। कोयला मंत्री के वापसी के बाद झारखण्ड के मुख्यमंत्री हेंमत सोरेन का रूख भी कमर्शियल माइनिंग के प्रति थोड़ा नरम दिखाई पड़ा। सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका पर पुनर्विचार की कोयला मंत्री की आग्रह भी काम करता दिख रहा है। श्री सोरेन ने इस संदर्भ में मीडिया के सवाल का सीधा जवाब देने के बजाए कहा था कि पदाधिकारियों से चर्चा करेंगे और विधि संगत जो ठीक होगा, निर्णय लिया जाएगा।

इधर, छत्तीसगढ़ सरकार का रूख भी अब कमर्शियल माइनिंग को लेकर नरम पड़ जाएगा। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से मुलाकात के दौरान हसदेव अरण्य क्षेत्र के पांच कोल ब्लाॅक को नीलामी से हटाने का फैसला कोयला मंत्री द्वारा ले लिया गया। इसके स्थान पर पांच कोल ब्लाॅक की क्षमता के बराबर वाले तीन दूसरे कोल ब्लाॅक को नीलामी में शामिल करने की सहमति भी बन गई।
यानी कोल संपदा की सबसे बड़ी ताकत रखने वाले दो राज्य को साधने में कोयला मंत्री सफल हो गए।

अब आगे क्या …?

यहां सवाल उठ रहा है कि अब आगे क्या होगा। कमर्शियल माइनिंग की मुखालफत श्रमिक संगठनों द्वारा की जा रही है। कोल उद्योग के ज्यादातर कामगार भी इसके पक्ष में नहीं है। तीन दिनों की हड़ताल में यह नजर आ चुका है। 18 अगस्त को फिर हड़ताल बुलाई गई है। ट्रेड यूनियन और वकर्स में विरोध के बावजूद केन्द्र सरकार अडिग है। कोयला मंत्रालय ने बातचीत का प्रयास किया, लेकिन बात नहीं बनी। अब विरोध की चिंता किए बगैर कमर्शियल माइनिंग को अंजाम तक पहुंचाने की राह पर केन्द्र सरकार चलती दिखाई पड़ रही है।

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