नई दिल्ली। सरकार की ओर से संसद में औद्योगिक संबंध संहिता विधेयक पेश किए जाने पर कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस तथा वाम सदस्यों समेत विपक्ष ने लोकसभा में हंगामा किया। विपक्षी सदस्यों का कहना था कि विधेयक श्रमिक विरोधी है और इसमें श्रमिकों के अधिकारों की उपेक्षा की गई है। लिहाजा इसे व्यापक चर्चा के लिए स्थायी समिति को भेजा जाए।
केंद्रीय श्रम एवं रोजगार राज्यमंत्री संतोष गंगवार ने सदन में विधेयक पेश करते हुए कहा कि बिल में ऐसा कुछ भी नहीं है जिससे श्रमिकों के अधिकारों का हनन होता हो। हालांकि बाद में सदन में बिल पेश हो गया। तृणमूल कांग्रेस के सौगत राय ने बिल का विरोध करते हुए कहा कि किसी श्रम संगठन ने इस बिल की मांग नहीं की थी। यह बिल फिक्की और सीआइआइ की मांग पर लाया गया है। इसमें कर्मचारियों के अधिकार सीमित कर दिए गए हैं। साथ ही बताया गया है कि कौन यूनियन अध्यक्ष हो सकता है और कौन नहीं। हम कई यूनियनों के अध्यक्ष हैं। कर्मचारी हमें चुनते हैं। इससे ज्यादा खतरनाक बात यह है कि बिल में हड़ताल और तालाबंदी पर रोक लगाने का प्रस्ताव किया गया है। ये श्रमिकों के मूलभूत अधिकारों का हनन है। कांग्रेस के अधीर रंजन चैधरी ने कहा कि बिल में विसंगतियों के साथ-साथ विवादास्पद प्रावधान हैं। सरकार स्थायी रोजगार के बजाय कारपोरेट सेक्टर के ‘जब चाहे रखो और जब चाहे निकालो (हायर एंड फायर) सिद्धांत’ को अमल में लाना चाहती है। इस सरकार ने श्रमिकों को कोई सामाजिक सुरक्षा प्रदान नहीं की है। बिल में ‘सामूहिक सौदेबाजी’ का कोई उल्लेख नहीं है। जबकि यह श्रमिकों का बुनियादी अधिकार है। इसमें अर्धन्यायिक अधिकारों वाले टिब्यूनलों को असीमित अधिकार दिए गए हैं। इसका उपबंध 75 आंख में धूल झोंकने वाला है क्योंकि इसमें फैक्ट्री बंद होने की दशा में कामगारों को क्षतिपूर्ति नहीं देने के कई बहाने दिए गए हैं। आरएसपी के एनके प्रेमचंद्रन ने कहा कि बिल में किसी औद्योगिक प्रतिष्ठान की यूनियन के पंजीकरण के लिए उसके पदाधिकारियों के उस कारखाने का कर्मचारी होने की शर्त रखी गई है जो अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के दिशानिर्देशों का उल्लंघन है। इसके अनेक प्रावधान समवर्ती सूची में आते हैं। लेकिन संबंधित राज्यों से परामर्श नहीं किया गया है। विपक्ष की आशंकाओं का जवाब देते हुए श्रम राज्यमंत्री गंगवार ने कहा कि बिल को सारे श्रम संगठनों, नियोक्ताओं और राज्य सरकारों के साथ विचार-विमर्श के बाद ही पेश किया गया है। आप चर्चा करें। बहस के बाद जो निर्णय लेंगे उसे माना जाएगा। बता दें कि औद्योगिक संबंध संहिता बिल पुराने 44 श्रम कानूनों को चार संक्षिप्त श्रम संहिताओं में बदलने की सरकार की मुहिम का हिस्सा है। इसे केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 20 नवंबर को मंजूरी प्रदान की थी।
(साभार: जागरण, नई दिल्ली)

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