रायपुर (IP News). छत्तीसगढ़ के वन मंत्री मोहम्मद अकबर ने कहा है कि लेमरू एलिफेंट रिजर्व से किसी भी गांव का विस्थापन नहीं होगा। उन्होंने विस्थापन की आशंकाओं को सिरे से खारिज करते हुए बताया कि न तो कोई गांव विस्थापित होगा न ही किसी के निजी और सामूहिक वनाधिकार पर कोई प्रभाव पड़ेगा। एलिफेंट रिजर्व से मानव- हाथी संघर्ष की आशंका को भी उन्होंने निराधार बताया और कहा कि इसके विपरीत हाथी रिजर्व मानव-हाथी संघर्ष को नियंत्रित करने में मदद करेगा। श्री अकबर ने जोर देकर कहा कि भूपेश बघेल की नेतृत्व वाली सरकार आदिवासियों और वनवासियों के सभी के अधिकारों और हितों की रक्षा के लिए कटिबद्ध है और कोई भी कार्य उनके हितों के खिलाफ नहीं किया जाएगा।

वन मंत्री मोहम्म्द अकबर ने एक बयान जारी कर उस समाचार को असत्य बताया है जिसमें लेमरू एलीफेंट रिजर्व के कारण किसी गांव का विस्थापन या मानव हाथी संघर्ष बढ़ने की आशंकाएं बतायी गई हैं। श्री अकबर ने जोर देकर कहा है कि लेमरू एलीफेंट रिजर्व का गठन ’सरंक्षण रिजर्व’ के रूप में किया जा रहा है, जिसके तहत न कोई गांव विस्थापित होगा और न ही किसी भी तरह निजी वन अधिकार या सामुदायिक वन अधिकार पर इसका प्रभाव पड़ेगा। रिजर्व क्षेत्र में आने वाले गांवों को हेबीटेट विकास की अतिरिक्त राशि भी मिलेगी जिससे मानव हाथी संघर्ष पर नियंत्रण अधिक बेहतर होगा।

श्री अकबर ने इस तरह के समाचारों को गुमराह करने वाला बताया की एलीफेंट रिजर्व से हाथी एक ही क्षेत्र में एकत्रित किए जाएंगे। इस तरह का कोई भी कार्य कभी नहीं किया जाता। हाथी लंबी दूरी तय करने वाला प्राणी है और वह हमेशा एक जगह नहीं रहता है। 2011 में तमोरा पिंगला और सेमरसोत दोनों सरगुजा सर्कल और बादलखोल रायगढ़ सर्कल में एलीफेंट रिजर्व का गठन किया गया था और पिछले दस सालों में वहां मानव हाथी संघर्ष पर प्रभावी नियंत्रण में सहायता मिली है। उक्त क्षेत्र अभ्यारण है जबकि लेमरू का गठन संरक्षण रिजर्व के रूप में किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि वन प्राणी संरक्षण अधिनियम 1972 की धारा 36 (ए) के तहत जो संरक्षण रिजर्व गठित किया जाता है, वहां कोई विस्थापन नहीं होता और निजी भूमि पर यह धारा लागू नहीं होती। शासकीय भूमि पर भी समस्त प्रकार के वन अधिकार, लघुवनोपज संग्रहण आदि बरकरार रहते हैं।

श्री अकबर ने आगे कहा कि रिजर्व क्षेत्र में आने पर भविष्य में इस क्षेत्र में कोई खनन परियोजना आदि के लिए विस्थापन नहीं होगा। लेमरू एलीफेंट के खिलाफ किया जा रहा दुष्प्रचार सही नहीं है वस्तुतः निजी स्वार्थवश कुछ लोग अनावश्यक ही यह भ्रम फैला रहे हैं इससे सभी आम नागरिकों को बचना चाहिए।

सार्थक ने कहा: रूकेगा हाथी- मानव द्वंद, धारा 36 एक से नहीं होगा विस्थापन

इधर, पर्यावरण के क्षेत्र में काम करने वाली गैर सरकारी संस्था सार्थक के सचिव लक्ष्मी चौहान ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को पत्र प्रेषित कर हाथी अभ्यारण्य का कोर एरिया बढ़ाने व धारा 36 (ए) के तहत इसका गठन करने के लिए धन्यवाद दिया है। हाथी अभ्यारण्य के विकसित हो जाने के बाद हाथी- मानव द्वंद का स्थयी हल निकलेगा। धारा 36 (ए) के तहत इसका गठन करने पर किसी भी ग्रामीण को विस्थापन की समस्या से नहीं जुझना पड़ेगा।

क्या है धारा 36 (ए)

वन्य प्राणी संरक्षण अधिनियम 1972 में 3 ऐसे प्रावधान है जिसके तहत राज्य सरकार किसी वन्य प्राणी क्षेत्र को संरक्षित कर सकती है। यह प्रावधान राष्ट्रीय उद्यान, अभ्यारण और संरक्षण रिजर्व बनाने से संबंधित है। राष्ट्रीय उद्यान या अभ्यारण बनाने में भविष्य में वनवासियों के विस्थापन का खतरा होता है, जबकि 2003 संषोधन के आधार पर आयी धारा 36 (ए) के तहत समस्त शासकीय भूमि को अधिसूचित कर वृहद क्षेत्र को संरक्षण रिजर्व बनाने से वनवासियों के लिये कभी विस्थापन का खतरा नहीं होता। और ना ही वनक्षेत्र में उनके निजी या सामुदायिक अधिकार प्रभावित होते हैं, लघु वन उपज के संग्रहण में भी कोई रोक नहीं लगती अर्थात् हाथी रिजर्व क्षेत्र के अन्दर पड़ने वाले गांवो के निवासियों के खेत मकान या आजिविका पर कोई भी विपरीत प्रभाव नहीं पड़ेगा।

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