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कोरबा (IP News). देश 10 श्रमिक संगठनों इंटक, एटक, एचएमएस, सीटू, एआईयूटीयूसी, टीयूसीसी, सेवा, एआइसीसीटीयू, एलपीएफ, यूटीयूसी ने संयुक्त हस्ताक्षरित राष्ट्रपति के समक्ष की याचिका प्रस्तुत की है। इसमें कोरोना संकट और लाॅकडाउन से प्रभावित हुए कामगारों की समस्याओं की ओर प्रमुखता से ध्यान आकृष्ट कराया गया है। याचिका में देष में चल रहे आंदोलनों सहित और भी कई तथ्योें का उल्लेख किया गया है और इस पर संज्ञान लेने का आग्रह किया गया है। देखें याचिका के बिंदु:

1. कथित तौर पर कोविड – 19 महामारी की वजह से भारत सरकार और प्रशासन द्वारा लगाए गए अचानक, अनियोजित राष्ट्रीय लॉकडाउन ने कामगार, मेहनकश लोगों को विपत्ति पूर्ण रूप से प्रभावित किया, उनमें से प्रवासी श्रमिकों को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ। इस दौरान उनके पास जीवन का कोई सहारा नहीं था। यहां तक कि श्रम मंत्रालय और गृह मंत्रालय द्वारा कथित रूप से जारी सलाह भी बेअसर साबित हुई जिन्हें वास्तव में सरकार द्वारा लागू किए बिना वापस ले लिया गया।

2. स्वास्थ्य प्रणाली पूर्णतः अपर्याप्त साबित हुई। निजी अस्पतालों ने कोविड रोगियों के उपचार के लिए सरकार द्वारा अपील की गई दरों के आधार पर इलाज करने से या तो इनकार कर दिया और उन्हें अमितव्ययी बताया या उन्होंने अपने दरवाजे ही बंद कर दिए। वेंटिलेटर, पीपीई, सेनिटाइजर की आपूर्ति आवश्यकता से अत्यधिक कम थी। केवल सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली-सार्वजनिक अस्पताल, उनके डॉक्टर, उनके कर्मचारी, स्वास्थ्य योजना के कार्यकर्ता (आशा कार्यकर्ता), आंगनवाड़ी कार्यकर्ता, नगरपालिका के स्वच्छता कार्यकर्ताओं ने अथक परिश्रम किया, अपने स्वयं के जीवन को प्रभावित किया और जीवन गंवाए भी। अपने इस कार्य हेतु उनने सभी की प्रशंसा और आभार हासिल किया। ऑर्डनेंस फैक्टरी के कार्यकर्ता अत्यंत आवश्यक वेंटिलेटर और पीपीई का उत्पादन करने की कार्रवाई में जुट गए थे। बहुचर्चित निजी उद्यमी पूरी तरह से विफल रहे।

3. फिर अर्थव्यवस्था के पहिए को फिर से पटरी पर लाने की ओर ध्यान गया। सरकार द्वारा इस संबंध में उठाए गए कदम सभी तर्क और अतीत के अनुभव के साथ-साथ प्रसिद्ध भारतीय अर्थशास्त्रियों की सलाह को धता बताते हैं। अर्थव्यवस्था महामारी की शुरुआत से पहले से ही मंदी की चपेट में थी और अधिकांश भारतीय लोगों के पास न्यूनतम क्रय शक्ति की भी कमी थी। उनके हाथ में पैसा रखना जरूरी था। अचानक तालाबंदी से समस्या और बढ़ गई।

4. फिर भी क्या किया जा रहा है। सरकारी कर्मचारियों और पेंशनभोगियों के महंगाई भत्ते राहत में वृद्धि को रोक दिया गया, समान कार्य के लिए समान वेतन पर सर्वोच्च न्यायालय के कई निर्णयों सहित अधिकतर श्रम कानूनों का उल्लंघन किया गया। व्यापार करने में आसानी के नाम पर निरीक्षणों पर रोक लगाई गई । श्रम कानून, जो जिस भी रूप में मौजूद हैं, उन्हें कई राज्यों में कार्यकारी आदेशोंध्अध्यादेशों के माध्यम से 1000 या अधिक दिनों के लिए निलंबित करने की मांग की गई (आईएलओ को सरकार को विभिन्न आईएलओ सम्मेलनों में पारित पस्तावों के लिए सरकार की प्रतिबद्धता याद दिलानी पड़ी), निरंतर लॉकडाउन के दौरान सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों का एक समूह निजीकरण और 100ः एफडीआई के लिए खोला गया जिसमें ब्लू चिप कंपनियों जैसे बीपीसीएल, एलआईसी , कोल इंडिया, बिजली क्षेत्र, आयुध कारखाने, रेलवे, ट्रेन मार्गों, हवाई अड्डों के साथ-साथ उनकी विनिर्माणध्मरम्मत कार्यशालाएं शामिल हैं। वास्तव में निजी क्षेत्रों में निहित स्वार्थी तत्वों द्वारा प्रवासी श्रमिकों को उनके गाँवों में वापस जाने से रोकने की मांग की गई। स्टेशनों पर उनकी असहाय भीड़ को कानून और व्यवस्था का मुद्दा मान उनसे अमानवीय व्यवहार किया गया! सर्वोच्च न्यायालय को इस मुद्दे को मानवीय रूप से और सर्वोच्च प्राथमिकता के साथ संभालने के लिए सरकार को निर्देशित करने के लिए हस्तक्षेप करना पड़ा। अध्यादेशों के माध्यम से कृषि को कारपोरेटीकरण की ओर धकेला गया। घोषित 20 लाख करोड़ रुपये का पैकेज एक बार फिर से आवश्यक मांग पक्ष को मजबूत करने के बजाय आपूर्ति-पक्ष को मदद की चाल है। प्रत्यक्ष आय सहायता और गैर-आय-कर दाता परिवारों और सभी गरीबों को पर्याप्त भोजन-सहायता उपलब्ध कराने सम्बन्धी पूरे ट्रेड यूनियन आंदोलन द्वारा बार-बार की गई मांग की घोर उपेक्षा की जा रही है।

5. देश के पूरे ट्रेड यूनियन आंदोलन ने बार – बार इन मुद्दों को संबंधित मंत्रालयों के समक्ष प्रतिनिधि मंडल, प्रदर्शन और यहां तक कि क्षेत्रवार हड़तालों के माध्यम से उठाया, लेकिन सरकार पूरी तरह से गैर जिम्मेदार है। इसने 2015 के बाद से, बार-बार अनुरोधों के बावजूद, देश के शीर्ष त्रिपक्षीय निकाय भारतीय श्रम सम्मेलन को नहीं आहूत किया है।

6. उपर्युक्त बिंदुओं और मुद्दों के मद्देनजर, भारत सरकार के संवैधानिक प्रमुख के रूप में हम आपसे निम्नलिखित राहत का आग्रह करते हैं।

केंद्र और राज्य सरकारों को निम्न हेतु निर्देशित करें : 

  • उन प्रवासी श्रमिकों के आश्रितों को पर्याप्त रूप से क्षति पूर्ति प्रदान करना, जिन्होंने 25 मार्च, 2020 की मध्यरात्रि से अचानक लॉकडाउन होने के कारण अपनी जान गंवा दी।
  • अगले छह महीनों के लिए सभी गैर-आय-कर दाता लोगों को मुफ्त राशन प्रदान करने के लिए, चाहे उनके पास कोई भी राशन कार्ड हो।
  •  प्रत्येक गैर- आयकर दाता व्यक्ति को अगले छह महीनों के लिए रु. 7500 प्रतिमाह और 60 वर्ष से अधिक उम्र के सभी लोगों को जीवनयापन की लागत से जुड़ी रु. 3000 की पेंशन।
  •  सभी श्रमिकों को अपने आधार कार्ड नंबर के साथ स्मार्ट आईडी कार्ड जारी करना जो पूरे भारत में मान्य हो और जो सामाजिक सुरक्षा लाभ के लिए उपयोगी होना चाहिए।
  •  रुपये 10,000 करोड़ का एक परिक्रामी कोष बनाया जाए जिसके माध्यम से “असंगठित क्षेत्र के कामगारों के लिए सोशल सिक्योरिटी एक्ट, 2008” के प्रावधानों के तहत सामाजिक सुरक्षा योजनाओं को लागू किया जाए।
  •  41 आयुध कारखानों को निगम में बदलने और फिर उसका निजीकरण करने और आर्मी बेस वर्क शॉप को गोको मॉडल में बदल कर उनको निजी क्षेत्र में सौंपने के सरकार के प्रस्ताव को वापस लिया जाए।
  •  रेलवे उत्पादन इकाइयों के कारपोरेटीकरण के लिए कदम उठाने और 109 रेलवे मार्गों को निजी क्षेत्र को सौंपने और रेलवे स्टेशनों का निजीकरण करने के प्रस्ताव वापिस लिए जाएं।
  •  सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों और सेवाओं के निजीकरण को रद्द करें जिनमें राज्य परिवहन, एलआईसी, बैंक, बीमा, कोयला, बीपीसीएल, एयर इंडिया, हवाई अड्डे, दूरसंचार, बंदरगाह और डॉक और नगरपालिका सेवाएं आदि शामिल हैं।
  •  सभी श्रम कानूनों के संहिता करण के माध्यम से उनको चार संहिताओं में शामिल करने और किसी भी श्रम कानून में संशोधन के प्रस्ताव को निरस्त करें और तुरंत “भारतीय श्रम सम्मेलन” बुलाएं। कई राज्यों में श्रम कानूनों के परिवर्तन और या निलंबित संचालन के सभी अध्यादेशों और कार्यकारी आदेशों को रद्द करें।
  •  स्वास्थ्य, शिक्षा और कृषि में निवेश और विस्तार करें य आवश्यक वस्तु अधिनियम के संशोधन सहित कृषि क्षेत्र पर सभी तीन अध्यादेशों को रद्द करें।
  •  “राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम, 2005” के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए बजटीय आवंटन में वृद्धि करें य प्रति वर्ष 200 दिनों के लिए नौकरी के आवंटन को सुनिश्चित करें और शहरी क्षेत्रों के लिए इसी तरह की योजना का विस्तार भी युद्ध स्तर पर बेरोजगारी के मुद्दे के हल के लिए करें। दैनिक वेतन रुपये 202 से रुपये 500 बढ़ाया जाना चाहिए।
  •  आपराधिक अभियोजन प्रावधानों का उपयोग करके जानबूझकर ऋण नहीं चुकाने वालों (विलफुल डिफॉल्टर्स) से ऋण की वसूली के लिए अभियान शुरू करें।

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