By … रेहाना तबस्सुम

केंद्र सरकार द्वारा सोमवार से शराबबंदी पर लगा प्रतिबंध हटा दिया गया है और कुछ नियमों के पालन के साथ शराब बिक्री की छूट दी गई है। सरकार का यह तर्क है कि इससे राजस्व हित होगा। वैश्विक आपदा के इस समय जब लोग अपने रोज़गार से हाथ धो बैठे हैं, व्यवसाय ठप पड़ गए हैं और देश की अर्थव्यवस्था लगभग डूब चुकी है, देश 3.0 लॉक डाउन का दंश झेल रहा है, ऐसे में क्या राजस्व हित के नाम पर शराब बेचा जाना उचित है ?

आर्थिक रूप से कमज़ोर तबकों के घरों में इस समय किस तरह की स्थितियां उत्पन्न हो गई हैं, इसका अंदाज़ा भी लगाना मुश्किल है। नशा एक सामाजिक बुराई है जिसके कारण परिवार बिखरते हैं। लोगों की आर्थिक स्थिति में कोई सुधार नहीं हो पाता। उनका अधिकांश पैसा नशे में ही बर्बाद हो जाता है। घरेलू हिंसा का एक बड़ा कारण भी नशा ही है और विपदा के इस समय सरकार का यह फैसला वाकई में सोचनीय है कि वो वह किस सोच के साथ इस फैसले को लागू करा रही है।

राजस्व हित का उपयोग जनता के कल्याण के लिए किया जाता है, लेकिन वैश्विक विपदा के इस समय शराब बिक्री शुरू करके किस तरह का जनकल्याण होगा ये समझ से परे है? विगत डेढ़ माह से जब शराब दुकानें बंद थी तो क्या किसी तरह का अहित हुआ यह एक अच्छा अवसर था शराबियों के लिए नशे की इस प्रवृति से छुटकारा पाने का और सरकार द्वारा शराबबंदी लागू करने का।

Lockdown के दौरान घरों में भी शांति रही क्योंकि शराबबंदी थी। अब शराब की बिक्री के कारण सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों के पालन की न केवल धज्जियां उड़ेंगी बल्कि corona संक्रमण को भी यह बढ़ावा देगा। यह फैसला उन लाखों करोड़ों भारतीयों के मनोबल को भी गिराने वाला कदम है जो अब तक लॉकडाउन के नियमों का पालन कठोरता से इस आस में कर रहे थे कि जल्द ही देश इस वैश्विक आपदा से उबर जाए, लेकिन इसकी उम्मीद अब नज़र नहीं आती। अब नज़र आएंगे तो केवल शराब बिक्री के आर्थिक, पारिवारिक, सामाजिक और स्वास्थ्यगत घातक दुष्परिणाम…

(ये लेखिका के स्वतंत्र विचार हैं, लेखिका दूरदर्शन रायपुर में समाचार वाचिका एवं आकाशवाणी बिलासपुर में उदघोषक है)

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