मध्य प्रदेश सरकार और केंद्र सरकार का एक संयुक्त उद्यम रीवा अल्ट्रा मेगा सोलर (आरयूएमएसएल) एक विशिष्ट स्थिति में आ गया है। इसने मध्य प्रदेश सरकार को महज 200 मेगावॉट सौर बिजली की आपूर्ति करने के लिए हाल में संपन्न हुए बोली के चरण में केंद्र सरकार की कंपनी एनटीपीसी को पीछे छोड़ दिया।

इसके बाद राज्य सरकार ने पिछले हफ्ते 30 अप्रैल को एनटीपीसी के साथ हस्ताक्षरित बिजली खरीद समझौता (पीएसए) पर आगे नहीं बढऩे का निर्णय लिया। कहानी में दिलचस्प मोड़ यह है कि जिस आरयूएमएसएल नीलामी के कारण यह स्थिति उत्पन्न हुई उसमें एनटीपीसी की सहायक कंपनी एनटीपीसी रीन्यूएबल एनर्जी विजेता बोलीदाताओं में से एक है।

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इसलिए यह लड़ाई केवल राज्य की कंपनी बनाम केंद्र की कंपनी का ही नहीं है बल्कि एनटीपीसी द्वारा बेची जाने वाली बिजली जिस पर वह डेवलपर से खरीदने के बाद मार्जिन की कमाई करती है के स्थान पर अब उसकी अपनी उत्पादित बिजली की बिक्री होगी।

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यह मामला भारत की अक्षय ऊर्जा की यात्रा में निहित खामियों को उजागर करता है जो कि देश में समझौते की शुचिता की कमी की जानी पहचानी चुनौती है। देश में सरकारी और कॉर्पोरेट स्तर पर जोर देने के कारण अक्षय ऊर्जा को एक गति मिली है।

दुविधा यह है कि क्या मध्य प्रदेश के बिजली उपभोक्ताओं को स्वस्थ बाजार को बनाए रखने के लिए एनटीपीसी की ठेका अवधि में 500 करोड़ रुपये का अतिरिक्त भुगतान करना चाहिए या फिर इस समझौते को रद्ïद कर दिया जाना चाहिए ।

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