नई दिल्ली, 22 मार्च। पुरानी पेंशन स्कीम (OPS) का मुद्दा गरमा रहा है। राज्यों के सरकारी कर्मचारी ओपीएस के पक्ष में हैं, केन्द्र सरकार इसके खिलाफ है। सीधे शब्दों में कहें तो मोदी सरकार इसे फिजूल खर्ची मानती है। उसके अनुसार पुरानी पेंशन स्कीम सरकारी खजाने पर एक बड़ा बोझ है।

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इधर, सरकारी कर्मचारियों के ओपीएस को लेकर लामबंद होता देख भाजपा शाषित राज्य भी अब ओपीएस पर विचार करने लगे हैं। आने वाले समय में कर्नाटक, मध्यप्रदेष, राजस्थान, छत्तीसगढ़ आदि राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। कर्नाटक की भाजपा सरकार ने ओपीएस को लेकर एक कमेटी बनाई है। कमेटी की रिपोर्ट के बाद सरकार ओपीएस लागू करने को लेकर फैसला लेगी। यदि कर्नाटक ने ओपीएस लागू किया तो मध्यप्रदेश की शिवराज सरकार पर दबाव आएगा।

राजस्थान व छत्तीसगढ़ की सरकार ओपीएस की पक्षधर है। वहां कांग्रेस की सरकारें हैं और ओपीएस का क्रियान्वयन किया जा रहा है। हालांकि इसमें अभी कई दिक्कते हैं। क्योंकि केन्द्रीय वित्ती मंत्री ने निर्मला सीतारमन ने साफ कर दिया है कि राज्य सरकारें अपने बूते ओपीएस लागू करें। केन्द्र सरकार द्वारा नई पेंशन स्कीम (NPS) के तहत जमा एक पैसा भी राज्य को नहीं दिया जाएगा। केन्द्र सरकार के इस रूख के कारण ही राज्यों की भाजपा सरकारें ओपीएस पर निर्णय नहीं ले पा रही हैं।

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राज्यों के कर्मचारी संगठन ओपीएस को लेकर सरकारों की घेराबंदी में जुट गए हैं। हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव में ओपीएस का मुद्दा प्रभावी रहा था और कांग्रेस ने भाजपा से सत्ता छीन ली। कर्मचारी संगठनों के हिसाब से नई की अपेक्षा पुरानी पेंशन स्कीम कही अधिक फायदे वाली है। यदि पुरानी और नई स्कीम की तुलना की जाए तो ओपीएस कहीं अधिक फायदेमंद दिखती है।

पुरानी पेंशन स्कीम (OPS)

  • इस स्कीम में रिटायरमेंट के समय कर्मचारी के वेतन की आधी राशि पेंशन के रूप में दी जाती है।
  • पुरानी पेंशन स्कीम में पेंशन के लिए कर्मचारी के वेतन से कोई पैसा नहीं कटता है।
  • पुरानी पेंशन स्कीम में भुगतान सरकार के राजकोष से होता है।
  • इस स्कीम में 20 लाख रुपए तक ग्रेच्युटी की रकम मिलती है।
  • रिटायर्ड कर्मचारी की मृत्यु होने पर उसके परिजनों को पेंशन की राशि मिलती है।
  • पुरानी स्कीम में जनरल प्रोविडेंट फंड (जीपीएफ) का प्रावधान है।
  • इसमें छह महीने बाद मिलने वाले महगाई भर्ती (डीए) का प्रावधान है।

नई पेंशन स्कीम (NP)

  • कर्मचारी की बेसिक सैलरी $ डीए का 10 फीसदी हिस्सा कटता है।
  • एनपीएस शेयर बाजार पर आधारित है, इसलिए यह सुरक्षित नहीं है।
  • इसमें छह महीने बाद मिलने वाले महंगाई भत्ते का प्रावधान नहीं है।
  • यहां रिटायरमेंट के बाद निश्चित पेंशन की गारंटी नहीं होती।
  • एनपीएस शेयर बाजार पर आधारित है, इसलिए यहां टैक्स का भी प्रावधान है।
  • इस स्कीम में रिटायरमेंट पर पेंशन पाने के लिए एनपीएस फंड का 40 फीसदी निवेश करना होता है।
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