कोरबा (छत्तीसगढ़)। सोमवार को बालको चिमनी हादसे को 10 वर्ष पूरे हो गए, लेकिन एक दशक गुजर जाने के बाद भी इस घटना के प्रमुख आरोपियों को सलाखों के पीछे डालने की रस्म भी नहीं निभाई जा सकी है। कुल 17 आरोपियों में 12 की ही गिरफ्तारी हो सकी थी। बालको के पूर्व सीईओ गुंजन गुप्ता और विद्युत संयंत्र की मूल ठेका कंपनी सेपको के चेयरमेन हाउ जुओजीन आज भी छुट्टे घूम रहे हैं। यहां बताना होगा कि 23 सितम्बर, 2009 को बालको की 1200 मेगावाट क्षमता वाली विद्युत परियोजना की निर्माणाधीन चिमनी ढह गई थी। चिमनी के मलबे में दबकर मौके पर कार्य कर रहे 40 मजदूरों की जान चली गई थी। बालको चिमनी हादसे की गूंज पूरी दुनिया के लोगों को सुनाई पड़ी थी। इधर, घटना के बाद राज्य की रमन सरकार द्वारा जस्टिस संदीप बख्शी की अध्यक्षता में न्यायिक जांच आयोग गठित किया गया था। आयोग ने 34 माह में जांच पूरी की थी और नौ अगस्त, 2012 को 122 पेज की रिपोर्ट राज्य सरकार को सौंपी थी। राज्य सरकार द्वारा गठित न्यायिक जांच आयोग द्वारा बालको प्रबंधन, सेपको, ठेका कंपनी जीडीसीएल, नगर पालिक निगम, श्रम विभाग, नगर तथा ग्राम निवेश विभाग, वन विभाग को लापरवाही एवं उदासीनता के लिए जिम्मेदार ठहराया था। मजाल है कि किसी के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई की गई हो। मजूदरों की आत्माएं आज भी न्याय की आस में भटक रही हैं, क्योंकि न्याय आधा अधूरा ही मिला है। घटना के बाद तमाम राजनीतिक दलों, मीडिया ने खूब रोटियां सेकीं, लेकिन अब इस पर चर्चा करना मुनासिब नहीं समझा जाता है। बालको के श्रमिक संगठन तो मृतप्रायः स्थिति में पहुंच चुके हैं, लिहाजा उनके हलक से भी काई आवाज नहीं निकल रही है। हो सकता है कुछेक यूनियन के लोग शाम के वक्त चंद मोमबत्तियां जला मृतत्माओं को श्रद्धांजलि अर्पित करने की औपचारिता निभाए।

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