मीडिया से चर्चा करते हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति के पदाधिकारी
मीडिया से चर्चा करते हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति के पदाधिकारी

रायपुर, 10 जून।  हसदेव अरण्य क्षेत्र में तीन खदानों के कोयला खनन प्रक्रिया को रोक दिया गया है। राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड (RRVNUL) को आवंटित तीन प्रस्तावित कोयला खदान परियोजनाओं पर अब आगे फिलहाल कोई कार्रवाई नहीं होगी। हालांकि ये खदानें शुरू नहीं हो सकीं थीं।

कलेक्टर संजीव झा ने बताया कि इन तीनों खदानों की खनन प्रक्रिया को आगामी आदेश तक के लिए रोक दिया गया है। केता बासन PEKB (परसा ईस्ट एंड केता बसान) के दूसरे चरण परियोजना से प्रभावित ग्रामीणों के पुनर्वास के लिए 8 जून को होने वाली ग्राम सभा भी रद्द कर दी गई है। इसी तरह केता एक्सटेंशन के पर्यावरण मंजूरी के लिए 13 जून को होने वाली जनसुनवाई भी रद्द है।

कलेक्टर ने बताया कि कानूनी प्रक्रियाओं के अलावा, PEKB के दूसरे चरण और परसा कोयला खदान के लिए पेड़ों की कटाई भी रोक दी गई है। इस वजह से ये प्रोजेक्ट अब रुक गए हैं। कलेक्टर ने साफ किया कि क्षेत्र के जिन खदानों में काम चल रहा है वह खदानें काम करती रहेंगी। राजस्थान की सरकार के लिए यहां कोयला खनन किया जा रहा है।

कोयला खनन परियोजना निरस्त होने तक चलेगा आंदोलन

इधर, हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति ने जारी बयान में कहा कि उनका स्पष्ट कहना है कि संविधान की पांचवी अनुसूची, पेसा कानून 1996, वनाधिकार मान्यता अधिनियम 2006 तथा भूमि अर्जन कानून 2013 के प्रावधानों के तहत ग्रामसभाओं ने खनन परियोजनाओं का सतत विरोध किया है।

राज्य व केंद्र सरकार द्वारा इन खनन परियोजनाओं को जारी की गई अनुमतियां ग्राम सभाओं के फर्जी प्रस्ताव पर आधारित है जिन्हे तत्काल निरस्त किए जाने के आदेश दिए जाने चाहिए।

खनन से हसदेव अरण्य के समृद्ध वन क्षेत्र के विनाश और मानव हाथी संघर्ष की समस्या विकराल होने की चेतवानी भारतीय वन्य जीव संस्थान द्वारा दी गई है।

स्वयं ICFRE जिसने अध्ययन की शर्तों के विपरीत जाकर अनुशंसा लिखी है, बावजूद इसके अपने सम्पूर्ण अध्ययन में खनन से पर्यावरण, हसदेव नदी के जलग्रहण क्षेत्र और जैव विविधता पर गंभीर अपरिवर्तनीय प्रभाव की बात को स्वीकार्य किया गया है।

इन दोनों अध्ययनों और केंद्रीय वन पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के वर्ष 2010 के नो- गो प्रावधान और वर्तमान में इन वायलेट नीति के तहत हसदेव अरण्य में खनन परियोजना को अनुमति दी ही नहीं जानी चाहिए थी। बहुत स्पष्ट है कि दवाबपूर्वक पर्यावरणीय और वन स्वीकृति हासिल की गई है।

इसीलिए सरकार ग्रामसभाओं के संवैधानिक विरोध और हसदेव के पर्यावरण संवेदनशील क्षेत्र के संरक्षण के मद्देनजर तत्काल इन तीनों कोल ब्लॉक को जारी की गई वन व पर्यावरणीय स्वीकृति निरस्त करने की कार्यवाही करें। भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया की अधिसूचना रद्द करे।

समिति ने कहा कि प्रक्रियाओं का स्थगन निश्चित ही यह हसदेव अरण्य के जनवादी संघर्ष की जीत की और एक कदम है, लेकिन हमें प्रक्रियाओं का सम्पूर्ण निरस्तीकरण चाहिए।

समिति ने यह भी कहा कि हसदेव अरण्य की सभी कोयला खनन परियोजना निरस्त होने तक आंदोलन यथावत जारी रहेगा।

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साभार : भास्कर

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