नई दिल्ली, 02 जुलाई। नेशनल कोल वेज एग्रीमेंट- 10 को खत्म हुए एक साल हो चुके हैं, लेकिन 11वें वेतन समझौते को लेकर जेबीसीसीआई में अभी तक ठोस चर्चा नहीं हो सकी है। एक जुलाई को हैदराबाद में हुई बैठक में सीआईएल प्रबंधन ने फिर से तीन फीसदी मिनिमम गारंटी बेनिफिट (एमजीबी) का प्रस्ताव रख दिया। प्रबंधन इससे आगे बढ़ने को तैयार नहीं था, जबकि यूनियन 50 फीसदी की मांग से 47 पर आया था।

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सवाल यह उठता है कि प्रबंधन आखिर अड़ियल रवैया क्यों अपना रहा है। बताया गया है सीआईएल के आला अफसर केन्द्र सरकार के दबाव में हैं। दरअसल केन्द्र सरकार की मंशा 10 साल के वेतन समझौते की थी, लेकिन जेबीसीसीआई की तीसरी बैठक में 10 साल के वेतन समझौते के ऑफर को ठुकरा दिया गया था। वेतन समझौता पांच वर्ष के लिए हो इस पर सहमति बनी।

यहां बताना होगा कि पिछली दफा कोल सेक्टर में 20 प्रतिशत एमजीबी पर वेतन समझौता हुआ था। कोल सेक्टर के अलावा इस दौर में करीब 19 पब्लिक सेक्टर या इससे संबंधित औद्योगिक प्रतिष्ठानों में जो वेतन समझौते हुए हैं वहां एक कंपनी (17 प्रतिशत) को छोड़ किसी में भी 15 फीसदी से अधिक एमजीबी नहीं दिया गया है। 10 से 15 फीसदी के बीच ही वेतन समझौते किए गए हैं। 80 फीसदी संस्थानों में 10 साल के लिए वेतन समझौता हुआ।

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इसलिए माना जा रहा है कि कोल सेक्टर में इसी औसत पर वेतन समझौता करने सरकार का सीआईएल पर दबाव है। जेबीसीसीआई की 5वीं बैठक में जब यूनियन ने अपनी मांग से 47 फीसदी एमजीबी की बात रखी तो प्रबंधन ने और नीचे आने कहा था। बताया गया है कि सीआईएल प्रबंधन तीन फीसदी से आगे इसलिए नहीं बढ़ रहा ताकि वो मामले को लटका का रखे, इससे वेतन समझौते में हो रही देरी की वजह से यूनियन दबाव में आएगा। फिर प्रबंधन निगोशीएशन करेगा।

हलांकि कोयला उद्योग की अन्य सार्वजनिक कंपनियों के मुकाबले स्थिति कुछ अलग है। क्योंकि कोल सेक्टर में यूनियन कहीं अधिक मजबूत है। यहां हड़ताल होने से बिजली, स्टील सहित अन्य सेक्टर पर प्रभाव पड़ता है। अर्थव्यवस्था डगमगाने की स्थिति में आ जाती है। ऐसी स्थिति में सरकार पर एक दबाव भी रहेगा।

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ज्वाइंट बाइपराइट कमेटी ऑफ कोल इंडस्ट्रीज- 11 (जेबीसीसीआई) की 5वीं बैठक बेनतीजा होने के बाद चारों यूनियन ने संयुक्त रूप से आंदोलन की बात कही है। इससे पहले कोयला मंत्री और कोल सचिव से मामले में हस्तक्षेप की गुहार लगाई जाएगी। साथ ही सभी अनुषांगिक कंपनियों के कामगारों के बीच जाकर प्रबंधन के अड़ियल रवैये की जानकारी देते हुए आंदोलन के लिए वातावरण बनाया जाएगा। इसके बाद ही हड़ताल जैसा कोई निर्णय लिया जाएगा।

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