नई दिल्ली, 16 सितम्बर। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चीता परियोजना के अंतर्गत अपने जन्मदिवस यानी 17 सितम्बर को मध्य प्रदेश के कुनो राष्ट्रीय उद्यान में चीतों को प्राकृतिक वास में छोडेंगे। 70 सालों बाद भारत में चीतों की रफ्तार देखने को मिलेगी।

नामीबिया से आठ चीतों को भारत लाया जा रहा है। ये एक विशेष कार्गो विमान में शनिवार सुबह मध्य प्रदेश के ग्वालियर हवाई अड्डे पर उतरेंगे। यहां से इन्हें भारतीय वायुसेना के चिनूक हेलीकॉप्टर के जरिये श्योपुर के कूनो नेशनल पार्क पहुंचाया जाएगा।

बड़े मांसाहारी जंगली जानवरों के अंतर- महाद्वीपीय स्थानांतरण की यह विश्व की पहली परियोजना है। इन चीतों को एक समझौता ज्ञापन के तहत नामीबिया से लाया गया है। यह परियोजना चीतों के प्राकृतिक वास को पुनर्जीवित करने और भारत के वन्य जीवन में विविधता लाने के प्रधानमंत्री मोदी के प्रयासों का हिस्सा है। 1952 में भारत में चीतों के विलुप्त होने की घोषणा की गयी थी।

छत्तीसगढ़ में हुआ था आखिरी चीतों का शिकार

भारतीय वन सेवा में कार्यरत प्रवीण कासवान ने ट्विटर पर एक थ्रेड शेयर किया है। जिसमें जानकारी दी गई है कि भारत के आखिरी चीतों का कहां और किसने शिकार किया था? प्रवीण कासवान के अनुसार, 1947 में आखिरी 3 चीतों का शिकार अविभाजित छत्तीसगढ़ में किया गया था। सरगुजा में कोरिया के महाराजा रामानुज प्रताप सिंह देव ने इन चीतों का शिकार किया था। जर्नल ऑफ द बॉम्बे नैचुरल हिस्ट्री सोसाइटी में इस शिकार के दस्तावेज मौजूद हैं। प्रवीण कासवान के अनुसार, भारत में चीतों का ये आखिरी दस्तावेज था, वो भी मरे हुए चीतों का। ये तस्वीर महाराजा रामानुज प्रताप सिंह देव के निजी सचिव ने ही दस्तावेज के तौर पर जर्नल ऑफ द बॉम्बे नैचुरल हिस्ट्री सोसाइटी को दी थी। इन आखिरी चीतों के शिकार के बाद 1952 में इसे विलुप्त घोषित कर दिया गया था।

ये चीते मध्य प्रदेश ही क्यों लाए जा रहे हैं?

सवाल का जवाब भी इन चीतों के शिकार से ही जुड़ा हुआ है। इन चीतों को छत्तीसगढ़ में मारा गया था, लेकिन 1948 में छत्तीसगढ़ राज्य मध्य प्रदेश का ही हिस्सा था। बाद में विभाजित कर एक नया राज्य बनाया गया था। आसान शब्दों में कहें, तो मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में पहले भी चीते रहते रहे हैं। तो, इसी को देखते हुए इन्हें यहां लाया जा रहा है। क्योंकि, इन चीतों को यहां रखने के बाद ये भी देखना होगा कि वे यहां के जंगल की स्थिति के हिसाब से खुद को ढाल पा रहे हैं या नहीं।

भारत में क्यों विलुप्त हुए चीते?

कई राजा भारत में चीतों के विलुप्त होने का सबसे बड़ा कारण उनका बढ़ता शिकार था। आजादी से पहले देश महाराजा हुआ करते थे। जो अपने मनोरंजन के लिए जानवरों का शिकार किया करते थे। आखिरी चीतों को मारने वाले महाराजा रामानुज प्रताप सिंह ने भी कई बाघ, तेंदुआ, चीतल, हिरण जैसे सैकड़ों जानवरों का शिकार किया था। हालांकि, चीतों की ये संख्या अचानक नहीं घटी। भारत लंबे समय तक मुगलों से लेकर अंग्रेजों का गुलाम रहा था। मुगलों और अंग्रेजों के दौर में चीतों का खूब शिकार किया गया। भारत की छोटी – छोटी रियासतों के राजा भी अंग्रेजों को अपनी रियासत के जंगलों में शिकार के लिए निमंत्रण देते थे। 19 वीं सदी की शुरुआत में ही चीते लुप्त होने के कगार पर पहुंच गए थे। देश की आजादी के बाद ये पूरी तरह से लुप्त हो गए।

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