कोरबा (आईपी न्यूज)। इस शहर की जमीन के नीचे सौ वर्षों से आग धधक रही है। आग भी ऐसी की इसे बुझाने के हर प्रयास विफल हो गए। इसके लिए दो हजार करोड़ से ज्यादा की राशि खर्च की जा चुकी है। यहां बात हो रही है झारखंड राज्य के झरिया की। झरिया, जहां कोयले का अकूत भण्डार है। भारत कोकिंग कोल लिमिटेड (बीसीसीएल) के अंतगर्त आने वाले झरिया कोलफील्ड्स एरिया में 31 कोयला खदानें स्थित हैं। इनमें तीन काॅलरी ऐसी हैं जो सौ वर्षों से ज्यादा समय से धधक रही हैं। इन भूमिगत खदानों में 1916 में आग लगी थी। उस वक्त यहां अंडर ग्राउंड माइनिंग होती थी। तब से अब तक आग का दायरा बढ़ते ही जा रहा है। भूमिगत आग की वजह से दर्जनों बस्तियां तबाह हो गईं। अब हालात यह हैं कि भूमिगत कोयले में लगी आग झरिया शहर के करीब पहुंच रही है। जानकारी के अनुसार आग पर नियंत्रण पाने के लिए 2300 करोड़ रुपए से ज्यादा की राशि खर्च की जा चुकी है। यहां बताना होगा कि 1890 में अंग्रेजों ने झरिया में कोयला खदान की खोज की थी। 1894 मेें खदान से कोयला उत्खनन शुरू की किया गया। 1972 में झरिया कोलफील्ड्स कोल इंडिया की सहयोगी कंपनी बीसीसीएल के अधीन हुआ। इसके पहले तक झरिया की कोयला खदानें निजी मालिकों के हाथों में थी। एक जानकारी के मुताबिक आग की वजह से करीब सवा तीन करोड़ टन कोयला जलकर राख हो चुका है। धधकती आग, गैस व धुएं के गुबार के बीच न केवल यहां माइनिंग होती है, बल्कि आसपास की बस्तियों में लोग परिवारों के साथ निवास भी करते हैं। जलते हुए कोयले को भारी वाहनों में लोड किया जाता है, तब एक भयावह दृश्य उत्पन्न होता है। लिलोरीपाथरा गांव में तो कोयले की खदानों के ऊपर की जमीन पर आग की लपटें उठती रहती हैं।

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