नई दिल्ली: देशभर से 500 शिक्षाविदों, वैज्ञानिकों और विभिन्न शैक्षणिक संस्थानों के अनुसंधानकर्ताओं ने पर्यावरण मंत्रालय से विवादास्पद मसौदा पर्यावरण प्रभाव आकलन (ईआईए) अधिसूचना वापस लेने और वर्तमान ईआईए 2006 अधिसूचना को एक नए प्रस्ताव से मजबूती प्रदान करने का आग्रह किया है.

बीते मार्च में अधिसूचना जारी होने के बाद मंत्रालय को करीब 17 लाख ईमेल के जरिये सुझाव मिले हैं, जिसमें कई आपत्तियां भी शामिल हैं.

एक और पत्र में 130 संस्थानों के हस्ताक्षरकर्ताओं ने पर्यावरण प्रभाव आकलन (ईआईए) अधिसूचना के मसौदे के बारे में अपनी चिंताओं को सूचीबद्ध किया है, जो जारी होने के बाद से विवादों में घिरी हुई है. इस पत्र में मंत्रालय से इसे वापस लेने का आग्रह किया गया है, क्योंकि यह पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती है, मंजूरी प्रक्रिया को कमजोर कर सकती है.

जिन संस्थानों और विश्वविद्यालयों ने मंत्रालय को लिखा है उनमें इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस (आईआईएससी), इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस एजुकेशन एंड रिसर्च (आईआईएसईआर), भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), नेशनल सेंटर फॉर बायोलॉजिकल साइंसेज (एनसीबीएस) और भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआईआई) शामिल हैं.

विवादास्पद अधिसूचना की ‘व्यापार में सुगमता को बढ़ावा देने के लिए पर्यावरण सुरक्षा उपायों को बुनियादी तौर पर खत्म करने’ को लेकर देश भर के छात्रों, नागरिकों, कार्यकर्ताओं, पर्यावरणविदों की ओर से कड़ी आलोचना की गई है और इसका विरोध किया गया है.

हस्ताक्षरकर्ताओं द्वारा जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है, ‘विभिन्न संस्थानों के पीएचडी छात्रों द्वारा शुरू किए गए इस संस्थागत सहयोग को 105 फैकल्टी, पूर्व फैकल्टी और वरिष्ठ वैज्ञानिकों के साथ ही 400 से अधिक पीएचडी छात्रों, पोस्ट-डॉक्टोरल रिसर्च फेलो, निजी शोधकर्ताओं और अन्य शोध छात्रों ने समर्थन किया है. इन सभी ने इस पत्र पर अपनी निजी क्षमता में हस्ताक्षर किए हैं.’

पत्र पर हस्ताक्षर करने वालों में शामिल आईआईएससी, बेंगलुरु के एसोसिएट प्रोफेसर कार्तिक शंकर ने कहा, ‘बाघ, कछुओं और हाथी जैसी प्रजातियों को लेकर काफी आवाज उठाई जाती है और कुछ अन्य जानवरों के लिए भी आक्रोश जताया जाता है, लेकिन सच्चाई यह है कि बड़े पैमाने पर विकास परियोजनाओं की खराब योजना का जैव विविधता, पारिस्थितिकी तंत्र और लोगों पर सबसे बड़ा नकारात्मक प्रभाव पड़ता है.’

आईआईटी-बाम्बे के पीएचडी छात्र अयाज अहमद ने कहा, ‘माना जाता है कि ईआईए प्रक्रिया प्रदूषणकारी उद्योगों और अन्य विकास परियोजनाओं को विनियमित करने और पर्यावरण पर उनके प्रभाव को कम करने के लिए है. हालांकि इसके बजाय, मसौदा पर्यावरण नियमों में सुगमता प्रदान करना प्रस्तावित करता है. हमें मजबूत पर्यावरणीय नियम की जरूरत है.’

मंत्रालय द्वारा 23 मार्च को जारी मसौदा ईआईए अधिसूचना को लेकर 11 अगस्त तक जनता के विचार और सुझाव आमंत्रित थे. इसके लिए इसका विभिन्न भाषाओं में अनुवाद कराने का मुद्दा भी उठा था.

बीते अगस्त माह में द वायर ने रिपोर्ट कर बताया था कि दिल्ली हाईकोर्ट के निर्देश के बाद केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने ईआईए अधिसूचना, 2020 के ड्राफ्ट को संविधान की आठवीं अनुसूची में दी गई 22 भाषाओं में अनुवाद करने के लिए विभिन्न राज्य सरकारों को पत्र लिखा था, लेकिन अभी तक इसमें से सिर्फ तीन भाषाओं में इसका अनुवाद हो पाया है.

पर्यावरण मंत्रालय ने खुद अनुवाद करने के बजाय ये काम राज्य सरकारों पर सौंपा और अब तक केंद्र इन राज्यों को इस संबंध में कुल पांच रिमाइंडर भेज चुका है, लेकिन कुल मिलाकर 19 में से सिर्फ तीन राज्यों से इसका जवाब आया है.

इस विवादास्पद अधिसूचना में कुछ उद्योगों को सार्वजनिक सुनवाई से छूट देना, उद्योगों को सालाना दो अनुपालन रिपोर्ट के बजाय एक पेश करने की अनुमति देना और पर्यावरण के प्रति संवेदनशील क्षेत्रों में लंबे समय के लिए खनन परियोजनाओं को मंजूरी देने जैसे प्रावधान शामिल हैं.

अधिसूचना के ड्राफ्ट का 22 भाषाओं में अनुवाद कराने के आदेश के खिलाफ केंद्र सरकार द्वारा दायर की गई याचिका बीते 13 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दी थी.

केंद्र ने दिल्ली हाईकोर्ट के 30 जून के उस फ़ैसले के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी, जिसमें कहा गया था कि सरकार पर्यावरण प्रभाव आकलन अधिसूचना, 2020 के ड्राफ्ट का संविधान की आठवीं अनुसूची में दी गई 22 भाषाओं में अनुवाद करवाकर इसका ख़ूब प्रचार करे.

न्यायालय ने कहा था कि विभिन्न भाषाओं में इस नोटिफिकेशन के उपलब्ध होने पर अलग-अलग वर्ग के लोग सरकार के इस नए पर्यावरण कानून के बारे में जान पाएंगे और सहजता से अपने विचार इस पर भेज पाएंगे.

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