छत्तीसगढ़ : छह गांवों के ग्रामीणों ने परसा कोयला खदान शुरू कराने आवाज की बुलंद, कलेक्टर को सौंपा ज्ञापन

जिलाधिकारी संजीव कुमार झा ने मामले की जांच कराकर तुंरत ही कार्यवाही करने का आश्वासन परसा और आस पास के गांव वालों को दिया है।

उदयपुर 29 मार्च। छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले के उदयपुर विकासखंड में परसा कोयला परियोजना के पक्ष में आस-पास के छह गांवों के निवासी बड़ी संख्या में मंगलवार को अंबिकापुर में इकठ्ठा हुए और जिला कलेक्टर को ज्ञापन सौंपा। ज्ञापन में परसा खदान को जल्द से जल्द शुरू कराने के लिए स्थानीय ग्रामीणों ने अपनी आवाज बुलंद कर दी है।

साथ ही राजधानी रायपुर स्थित तथाकथित एनजीओ के नाम पर स्थानीय लोगों को गुमराह करने वाले बाहरी तत्वों को ग्राम प्रवेश पर आपत्ति जताते हुए जिला प्रशासन से उनकी गतिविधियों पर रोक लगाने की मांग की है।

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जिलाधिकारी संजीव कुमार झा ने मामले की जांच कराकर तुंरत ही कार्यवाही करने का आश्वासन परसा और आस पास के गांव वालों को दिया है। परसा खदान शुरू होने से सिर्फ स्थानिय लोगों को रोजगार के अवसर मिलेंगे तथा राज्य सरकार को बड़ा राजस्व और देश को किफायती दामों पर बिजली भी मिलेगी। परसा और आसपास के गांव घाटबर्रा, फत्तेपुर, जनार्दनपुर, साल्हि इत्यादि से करीब 1500 लोगों ने जिला प्रशासन से फर्जी एनजीओ वालों को उनके ग्राम में प्रवेश पर प्रतिबंध लगाने के लिए सरगुजा कलेक्टर संजीव कुमार झा से अनुरोध किया।

परसा गांव के उप सरपंच शिव कुमार यादव ने कहा, “हम यहां परसा खदान परियोजना के समर्थन करते हैं और एक एनजीओ द्वारा स्थानिय लोगों को बाहरी लोगों के जरिए भड़काया जाता है, उसका विरोध करते हैं। हम कलेक्टर को निवेदन करते हैं कि अगर परसा खदान शुरू नहीं होती है तो सरकार को अनुरोध करने के लिए हम यहां से राजधानी रायपुर भी जायेंगे। यह आदिवासियों का विस्तार है और उनको रोजगार की जरुरत है। जब कोरोना का संकट का समय था तब हमारे साथ खदान की कंपनियां खड़ी थी, न की वह बाहरी लोग जो खदान और क्षेत्र के विकास का विरोध करते हैं।”

इन ग्रामीणों ने मांगे पूरी नहीं होने पर जिला प्रशासन को उग्र आंदोलन की चेतावनी भी दे है।

ग्रामीणों ने जिला कलेक्टर को बताया कि उन्होंने वर्ष 2019 में परसा कोयला परियोजना के लिए इस उम्मीद में अपनी जमीन दी थी कि उन्हें जमीन की अच्छी कीमत के साथ-साथ रोजगार भी उपलब्ध होगा। किन्तु आज तक जमीन देने के बावजूद खदान शुरू ना होने के कारण उन्हें रोजगार के अवसर नहीं मिल पा रहे हैं। इस वजह से उन्हें गुजर-बसर करने के लिए जमीन मुआवजे से मिले पैसे ही निर्वाह के लिए खर्च करने पड़ रहे हैं। मुआवजे की राशि जो स्थानीय लोगों के भविष्य का एक मात्र सहारा है उसको खर्च करने पर मजबूर है। उन्हांने बताया की इस सबका जिम्मेदार तथाकथित बाहरी एनजीओ है।

साल्हि गांव की वेदमती उइके ने कहा, “पड़ोस के गांव में संचालित पीईकेबी खदान के ग्रामीण, गावों के चौतरफा विकास होने से काफी समृद्ध हो रहे हैं। पीईकेबी खदान के सभी गांवों में ग्रामीणों को नौकरी देने के साथ-साथ गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, स्वास्थ्य, आजीविका और ग्रामीण विकास से सम्बन्धित कई अन्य योजनायें संचालित है, लेकिन हम परसा परियोजना के लाभार्थी ब्लॉक शुरू नहीं होने से इन सभी सुविधाओं से आज तक वंचित हैं।”

गौरतलब है कि सरगुजा जिले में राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड (आरआरवीयूएनएल) की ताप विद्युत परियोजनाओं के लिए तीन कोल ब्लॉक परसा ईस्ट केते बासेन (पीईकेबी), परसा और केते एक्सटेंशन केंद्र सरकार द्वारा कई साल पहले आवंटित किया गए थे।

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अभी पीईकेबी में खनन का कार्य चल रहा है लेकिन शेष दो ब्लॉकों के लिए अनुमति लेने का कार्य छत्तीसगढ़ शासन के पास अटका पड़ा है। ग्रामीणों ने जिस कोल ब्लॉक के समर्थन के लिए जिला कलेक्टर को ज्ञापन दिया है, उसके जमीन का मुआवजा भूमि अधिग्रहण नीति के तहत ग्रामीणों को मिल चुका है जबकि ब्लॉक शुरू होने पर सभी लाभार्थियों को पुनर्वास और पुनर्व्यस्थापन नीति के तहत नौकरी दिया जाना शेष है।

उल्लेखनीय है कि छत्तीसगढ़ राज्य के कोयला खदानों से देश के गुजरात, महाराष्ट्र और राजस्थान राज्य के कई बिजली संयंत्रों में कोयले के आपूर्ति होती है जिससे बिजली का उत्पादन संभव हो पाता है तथा वहां की सरकार नागरिकों को सस्ते दरों पर बिजली उपलब्ध करा पाती हैं।

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