केन्द्र सरकार ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) को एक मामले की सुनवाई के दौरान बताया है कि अधिक राख उत्सर्जित करने वाले कोयले के उपयोग को लेकर अधिसूचना जारी की गई है।

केन्द्र के अनुसार तकनीक अध्ययन में इस तरह का कोयला कम प्रदूषण पैदा करने वाला पाया गया है।

पर्यावरण और कोयला मंत्रालय की ओर से एनजीटी में दाखिल किए गए संयुक्त जवाब में कहा गया है कि कोयले पर आधारित बिजलीघरों में ज्यादा राख पैदा करने वाले कोयले के इस्तेमाल के निर्देश दिए गए हैं। साथ ही कोयले से उत्सर्जित राख के उपयोग के तरीके भी बताए गए हैं। यह अधिसूचना 21 मई, 2020 को जारी की गई है।

एनजीटी को बताया गया कि अगर ज्यादा राख पैदा करने वाले कोयले के इस्तेमाल की अनुमति न देकर उसे पानी से धोकर कम राख पैदा करने वाला बनाया गया तो बड़ी मात्रा में पानी लगेगा। इससे पानी का इस्तेमाल बढ़ेगा और वह प्रदूषित भी होगा।

दोनों ही मंत्रालयों के अधिवक्ताओं ने एनजीटी को बताया कि प्रदूषण नियंत्रित करने के सिलसिले में इसी तरह का एक मामला सुप्रीम कोर्ट में भी चल रहा है। इसलिए एनजीटी में उसी तरह के मामले में सुनवाई होना उचित नहीं है।

एनजीटी ने इस सुझाव को माना और लंबित याचिका का निस्तारण कर दिया। यह याचिका गैर सरकारी संगठन अर्थ ने 21 मई, 2020 को केंद्र सरकार की अधिसूचना के खिलाफ दायर की थी। याचिका में ज्यादा राख पैदा करने वाले कोयले के इस्तेमाल के निर्देश को चुनौती दी गई थी। यह अधिसूचना पर्यावरण मंत्रालय की ओर से जारी की गई थी।

 

Source : Jagran

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