कोरबा (IP News). एनटीपीसी कोरबा द्वारा निगम सामाजिक दायित्व के अंतर्गत मिशन आजीविका प्रोग्राम के माध्यम से ग्रामीण महिलाओं को आत्मनिर्भर होने का गुर सिखाया जा रहा है। इसके अंतर्गत ग्रामीण महिलाओं को स्वरोजगार प्रदान करने के उद्देश्य से कम लागत से बनने वाले ओएस्टर मशरूम की खेती करने का प्रशिक्षण दिया गया।

एनटीपीसी के सहयोगी ग्राम धनरास, सलिहाभाठा एवं घमोटा के 12 महिला स्वयंसहायक समूह को प्रशिक्षण प्रदान किया गया है। इन समूह में लगभग 120 महिला सदस्य हैं। महिलाओं को ट्रेनिंग देने के लिए एनटीपीसी द्वारा सृष्टि फाउंडेशन के माध्यम से तकनीकी सहायता प्रदान की गई। उस ट्रेनिंग का उपयोग कर के महिलाओं द्वारा गांव में भरपूर मात्रा में मिलनेवाले पैरा की उपयोग से कम पैसों की लागत एवं कम मेहनत से मशरूम उत्पादन किया जा रहा है। इस मशरूम की स्थानीय बाजार में बहुत अच्छी मांग है। स्वादिष्ट एवं पौष्टिकता से भरपूर यह मशरूम सभी वर्ग के लोगों के लिए एक बहुत अच्छी खाद्य सामाग्री है।

ऐसा होता है तैयार

ग्रामीण क्षेत्र में बहुत आसानी से मिलने वाले पैरा को काट लिया जाता है। पानी में दवाई मिलाकर कटे हुए पैरा को भिगोकर इसका उपचार किया जाता है। इसे पानी से अलग करके सही मात्र में नमी रखने के लिए भीगे हुए पैरा को सुखाया जाता है। पानी सुख जाने के वाद उस पैरा को पालिथीन में मशरूम बीज डाल कर पैक किया जाता है और उस पैक को अंधेरे कमरे मे कुछ दिनांे तक रखा जाता है ताकि बीज पैरा के साथ मिलकर मुशरूम बन सके। पालिथीन पैक को 22 दिनों के वाद खोल दिया जाता है। 22 दिनों से लेकर 45 दिनों तक मशरूम की पैदावार की जाती है। मशरूम की एक बेड बनाने के लिए 37 से 40 रुपये की लागत आती है। एक बेड से 1 किलो मशरूम पैदा होता है, जिसका बाजार भाव 120 रुपये प्रति किलो है। 1 बेड से कम से कम 80 रुपये की कमाई हो जाती है। मशरूम कई प्रजाति के होते हंै। अतः ऋतु चक्र के अनुसार अलग-अलग प्रकार के मशरूम का उत्पादन किया जा सकता है।

12 समूहों का दिया गया प्रशिक्षण

एनटीपीसी कोरबा द्वारा ग्राम धनरास, सलिहाभाठा एवं घमोटा में 12 स्व-सहायक समूह को प्रशिक्षण प्रदान किया गया है। इससे लगभग 120 महिलाएं जुड़ी हुई हैं। घर के काम काज के बाद बचे हुए समय में घर की चार दीवारों के अंदर ही मशरूम की खेती कर महिलाएं आत्मनिर्भर होने के साथ साथ घर का गुजारा भी करने में सक्षम बन रही हैं। इस उपलब्धि पर श्रीमती सरस्वती कंवर, सचिव महालक्ष्मी, स्व-सहायता समूह एवं श्रीमती उमवाती कायांतर, सचिव चंडी स्व-सहायता समूह, ग्राम-धनरास का कहना है एनटीपीसी के प्रयास से आज वो लोग समय का सही उपयोग कर के आत्मनिर्भर बनने में सक्षम हुए हैं। इस पहल से जहां पैरा का सही उपयोग कर पर्यावरण को साफ सुथरा रखने का नया प्रयोग हो रहा है वहीं ग्रामीण महिलाएं आत्मनिर्भर बन रही है।

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