कोरबा (IP News). छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले में स्थित मदनपुर साउथ कोल ब्लाॅक के लिए भूमि अधिग्रहण करने कोल मंत्रालय ने अधिसूचना जारी की है। 24 दिसम्बर को समाचार पत्रों में इसका प्रकाशन कराया गया है। कोल बेयरिंग एक्ट 1957 के तहत यह अधिग्रहण किया जाएगा। केन्द्र सरकार द्वारा पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार) अधिनियम 1996 (पेसा एक्ट) को दरकिनार कर कोयला खदान के लिए भूमि ली जाएगी। वन भूमि के डायवर्सन की प्रक्रिया को भी किनारे लगा दिया गया है।

यहां बताना होगा मदनपुर साउथ कोल ब्लाॅक का आबंटन आन्ध्रप्रदेश मिनरल डेवलेपमेंट कारपोरेशन (APMDC) को किया गया है। कोल ब्लाॅक के लिए ग्राम मोरगा एवं केतमा की 712.072 हेक्टेयर जमीन अधिग्रहित की जाएगी। इसमें 648.601 हेक्टेयर वन भूमि है। 63.471 हेक्टेयर नाॅन फारेस्ट लैंड है। मदनपुर साउथ कोल ब्लाॅक में 158.92 मिलियन टन कोयला भंडारित है। कंपनी द्वारा प्रस्तुत माइनिंग प्लान के अनुसार सालाना 5.4 मिलियन टन का कोयला उत्पादन किया जाएगा। 35 वर्षों तक कोयला उत्खनन का कार्य होगा।

ग्राम सभा ने विरोध में किया है प्रस्ताव पारित

मोरगा एवं केतमा की ग्राम सभाओं ने कोल आबंटन का विरोध किया है। पूर्व में आंबटन के विरोध में प्रस्ताव भी पारित किया जा चुका है। कोरबा जिला पांचवी अनूसचित क्षेत्र में समाहित है। इस लिहाज से जमीन अधिग्रहण के लिए पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार) अधिनियम 1996 का पालन करना होगा। यानी भूमि लेने के लिए ग्राम सभा सेे सहमति अनिवार्य है। कोयला मंत्रालय ने कोल बेयरिंग एक्ट 1957 के तहत अधिसूचना जारी कर पेसा एक्ट के परिपालन को ठेंगा दिया है।

लेमरू हाथी रिजर्व के समीप

मदनपुर साउथ कोल ब्लाॅक हसदेव अरण्य क्षेत्र में स्थित है, जो की लेमरू हाथी रिजर्व से लगा हुआ है। कमर्शियल माइनिंग के तहत हसदेव अरण्य क्षेत्र के पांच कोल ब्लाॅक को राज्य सरकार की आपत्ति पर नीलामी सूची से हटा लिया गया था। अभी भी कई कोल ब्लाॅक ऐसे हैं जो हसदेव एवं मांड नदी जलग्रहण क्षेत्र में स्थित हैं। ऐसे कोयला खदानों का आबंटन निरस्त करने की मांग निरंतर की जा रही है। क्षेत्र के ग्रामीण लगातार इस विरोध कर रहे हैं। ग्राम सभाएं इसके खिलाफ हैं। इधर, छत्तीसगढ़ सरकार ने पेसा अधिनियम के प्रावधानों को लागू करने के लिए नियमों को लागू करने के लिए प्रक्रिया शुरू कर दी है।

क्या है पेसा एक्ट

संसद ने 5वीं अनुसूची में शामिल जनजातीय और पर्वतीय क्षेत्रों पर पंचायतों से संबंधित उपबंधों का विस्तार करने के लिये 1996 में पंचायत के प्रावधान (अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार) अधिनियम पारित किया था। इस अधिनियम के अंतर्गत निचले स्तर पर ग्राम सभा को सबसे मूल इकाई माना गया है और इसे लोगों की परंपराओं, रिवाजों, सांस्कृतिक पहचान तथा समुदाय के संसाधनों की रक्षा की जिम्मेदारी दी गई है। इसमें लघु वनोपज का स्वामित्व, गांव-बाजारों का प्रबंधन, स्थानीय योजनाओं व संसाधनों पर नियंत्रण करने और स्थानीय विवादों को निपटाने की शक्ति ग्राम सभा को दी गई है।

ग्राम सभा को पंचायत से ऊपर स्थान

अधिनियम में ग्राम सभा को परिभाषित कर इसमें गांव की मतदाता सूची के सभी व्यक्तियों को सम्मिलित किया गया है (धारा 4स) पंचायत की तुलना में यह कहीं अधिक प्रतिनिधित्व वाली इकाई है जिसमें कुछेक ही निर्वाचित व्यक्ति होते हैं। कानून ने छोटी इकाई पंचायत को ग्राम सभा के प्रति जवाबदेह एवं उत्तरदायी बना दिया है। जिसमें गांव समुदाय के सभी लोग होते हैं। कानून गांव के सामाजिक-आर्थिक विकास से संबंधित सभी योजनाओं, कार्यक्रमों एवं परियोजनाओं की ग्राम सभा द्वारा पुष्टि के बाद ही पंचायतों द्वारा इन्हें क्रियान्वित किया जा सकेगा और क्रियान्वयन के बाद इन सभी के लिए हुए व्ययों का उपयोगिता प्रमाण पत्र भी पंचायत को ग्राम सभा से लेना होगा जिसकी पूर्व में उसने पुष्टि की थी। कानून ग्राम सभा (न कि पंचायत) को ही यह दायित्व देता है कि वह गरीबी उन्मूलन एवं अन्य कार्यक्रमों के अंतर्गत लाभार्थी व्यक्तियों की पहचान या चयन करे।

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