भिलाई और भिलाईवासियों को जो दूसरों से अलग और अद्भुत छवि बनती है, वह है उनकी करुणा, प्रेम और अपनेपन की भावना। वे सबको स्वीकार करते हैं, सबको अपनाते हैं और आसानी से संगठित होकर एक समुदाय में बंध जाते हैं। भिलाईवासी एक-दूसरे से बहुत कुछ सीखते और सिखाते हैं, एक दूसरे के विकास में आपसी सहयोग करते हैं। जितना संभव हो सके एक-दूसरे का साथ देते हैं। भिलाई बिरादरी का यह जुड़ाव हर किसी की जिंदगी से जुड़ा हुआ है सेल……, कुछ इस तरह से नज़र आता है।

समय बदल रहा है। नई पीढ़ी का आकर्षण बड़े शहरों की ओर निश्चित रूप से बढ़ रहा है। लेकिन नई पीढ़ी के बहुत से लोग अभी भी इस्पात नगरी में मौजूद हैं और एक ऐसे संगठन में सक्रिय है। जिस संगठन में कभी उनके परिवार के अग्रज कार्य करते थे। ऐसे संगठन का प्रतिनिधित्व करना बहुत गर्व की बात है, जहां उनके माता-पिता और यहां तक कि उनके दादा-दादी ने अपने पूरा जीवन और कार्यसेवा उसी संगठन में बिताई हो। दूसरी और तीसरी पीढ़ी के सदस्यों की उसी संगठन में भागीदारी, वफादारी और विश्वास को दर्शाता है। इस शहर पर सेल के प्रभाव का यही स्तर बना हुआ है।

सेल प्रतिवर्ष 45 वर्ष या उससे कम उम्र के सभी युवा प्रबंधकों के लिए चेयरमैन्स ट्रॉफी फॉर यंग मैनेजर्स (सीटीवायएम) आयोजित करता है। इस वर्ष, न केवल बीएसपी की युवा टीम ने प्रतिष्ठित ट्रॉफी और सम्मान प्राप्त किया है, बल्कि टीम के सभी सदस्य एक सामान्य किन्तु विषेष पहलू को उजागर करते हैं, जो सम्मान के गौरव को कई गुना बढ़ा देता है और वो यह है कि ये सभी सदस्य “मेड इन सेल” हैं।

सोनल श्रीवास्तव, जो वर्तमान में आरसीएल में प्रबंधक पद पर कार्यरत हैं और ये भिलाई इस्पात संयंत्र में शामिल होने वाली तीसरी पीढ़ी के सदस्य हैं। श्री सोनल श्रीवास्तव कहते हैं कि “मैं अपने दादाजी से कभी नहीं मिला, उनकी मृत्यु जल्दी हो गई थी, लेकिन उनके संस्मरण आज भी हमें गौरवान्वित करते हैं”। सोनल के दादा जी ने बीएचयू से मेटलर्जिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा किया था। अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद वह टाटा प्रोजेक्ट्स में शामिल हो गए थे, लेकिन नियति को तो कुछ और ही मंजूर था। टाटा में अपने दो साल का कार्यकाल पूर्ण करने के बाद, वह बेहतर संभावनाओं के लिए मुंबई जा रहे थे, लेकिन यात्रा के बीच में ही वह एक ऐसी जगह पर रुके जो चारों ओर तंबू से घिरा हुआ था। जैसे ही वह स्टेशन से बाहर निकले, उनके पास एक नौकरी थी, जो तब अंजान भिलाई इस्पात संयंत्र की नौकरी थी। वह फाउंड्री और फोर्ज शॉप में शामिल हुए और उनकी उपलब्धि के लिए उन्हें 1971 में ‘मेटलर्जिस्ट ऑफ द ईयर’ सम्मान से सम्मानित किया गया।

सोनल श्रीवास्तव ने कहा कि मेरे पिता भिलाई में पैदा हुए, यहीं पले-बढ़े और भिलाई विद्यालय में स्कूली शिक्षा प्राप्त कर, भिलाई इस्पात संयंत्र में सेवा देने वाले दूसरी पीढ़ी के कर्मचारी बने। इस संगठन में 39 साल की सेवा के बाद, वह ढेर सारी अच्छी यादों और गर्व की भावना के साथ, पिछले साल ही मर्चेंट मिल विभाग से सेवानिवृत्त हुए हैं।

श्री सोनल बताते हैं कि तीसरी पीढ़ी का सेल कर्मचारी होने के नाते, मैंने अपना मिडिल स्कूल बीएसपी ईएमएमएस-5 से और अपना हाई स्कूल बीएसपी के एसएसएस-10 से पूरा किया। एनआईटी रायपुर से मेटलर्जी में अपनी इंजीनियरिंग पूरी करने के बाद, मैं वर्ष 2014 में सेल की कार्यसेवा में शामिल हो गया। एक कर्मचारी के रूप में भले ही अब तक मैंने यहाँ एक दशक ही बिताया हो, पर बीएसपी के साथ और सहयोग के कारण सेल हमेशा ही मेरे अस्तित्व का अभिन्न अंग रहा है।

तीसरी पीढ़ी के एक और कर्मचारी और सीटीवाईएम के विजेता सदस्य सिद्धार्थ रॉय, वर्ष 2015 में भिलाई इस्पात संयंत्र में शामिल हुए और वर्तमान में ब्लास्ट फर्नेस-8 (ऑपरेशन) में प्रबंधक के पद पर कार्यरत हैं।

सिद्धार्थ रॉय का कहना है कि “सेल मेरे लिए नया नहीं है, बल्कि मेरे जीवन का एक हिस्सा है”। इसकी शुरुआत 1950 के दशक में हुई और यहाँ की कड़ी मेहनत, ईमानदारी और बुद्धिमत्ता की मशाल आने वाली पीढ़ियों तक भी पहुँची है। सेल में कार्य करने वालों में सबसे पहले मेरे दादाजी थे – एक साधारण दूरदर्शी व्यक्ति थे। उन्होंने न केवल अपना पैतृक घर और इस्को इस्पात संयंत्र (पूर्व में कुल्टी, पश्चिम बंगाल में स्थित) में नौकरी छोड़ दी, बल्कि अन्य लोगों को भी एक अविकसित, नई जगह पर जाने और वहां रहने के लिए मना लिया और वो सभी भिलाई चले आए। उन दिनों, भिलाई इस्पात संयंत्र एक मिलियन टन प्रतिवर्ष उत्पाउन क्षमता वाला संयंत्र था। अभी नया सेटअप होने के कारण, पूर्व सोवियत संघ (यूएसएसआर) टेक्नोलॉजी को आवश्यक रूप से सीखना सबसे महत्वपूर्ण होने के साथ साथ यहां के प्रत्येक कर्मचारियों का प्राथमिक उद्देश्य बन गया था। कंपनी विकसित हुई, उसके साथ ही लोगों ने विकास किया और इस्पात श्रमिकों की पहली पीढ़ी धीरे-धीरे समाप्त होने लगी। फिर मेरे पिता, वर्ष 1980 के दशक के मध्य में सेल में शामिल हुए। वह एक ऐसा समय था जब हमारा परिवार ‘ग्रोथ’ कर रहा था। संयंत्र की क्षमता पहले ही 2.5 मिलिटन टन प्रतिवर्ष तक बढ़ा दी गई, जो उस समय एक उल्लेखनीय और तकनीकी रूप से आष्चर्यजनक उपलब्धि थी। अत्याधुनिक टेक्नोलॉजी वाली प्लेट मिल देखने लायक थी।

सिद्धार्थ रॉय बताते हैं कि मेरे पिता ने अपने करियर की शुरुआत श्रमिकों के निचले स्तर से की और धीरे-धीरे फ्रंटलाइन मैनेजर बनकर ऊँचे स्तर तक पहुंच गए। इस संगठन में 35 साल की सेवा देने के बाद, ढेर सारी यादों के साथ आखिरकार वह वर्ष 2022 में सेवानिवृत्त हो गए।

सिद्धार्थ रॉय ने बताया कि मेरी बुनियादी शिक्षा बीएसपी ईएमएमएस-5 और बीएसपी एसएसएस-10 से हुई। मैंने एनआईटी रायपुर में मेटलर्जिकल इंजीनियरिंग को चुना। कड़ी मेहनत करने के बाद मुझे भारत के तीन प्रमुख इस्पात निर्माताओं से आॅफर आया। चुनाव करना कठिन नहीं था, क्योंकि सेल मेरे लिए एक स्पष्ट और साफ विकल्प था। मैं सेल से वर्ष 2015 में जुड़ा और सबसे पहले ब्लूमिंग एंड बिलेट मिल (बीबीएम) में पहुंचा और फिर मेरा ध्यान ब्लास्ट फर्नेस पर केंद्रित हो गया। जहां मुझे महामाया, बीएफ-8 की कमीशनिंग टीम का हिस्सा बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। यहाँ की हर चीज मुझे याद दिलाती है कि भिलाई इस्पात संयंत्र की जड़े कैसे मेरे परिवार के अस्तित्व से जुडी हुई है। सेल ने मुझे दोनों बांहें फैलाकर स्वीकार किया है।

टीम के तीसरे सदस्य विनय पवार हैं, जो वर्तमान में एलडीसीपी/आरएमपी-3 में उप प्रबंधक के रूप में कार्यरत हैं और ये दूसरी पीढ़ी के बीएसपी कर्मचारी हैं।

विनय पवार ने कहा, मेरे पिता 1989 में गैराज सेक्टर-7 में बीएसपी में शामिल हुए थे। वर्ष 1997 में हमारे भिलाई आने तक वह रसमड़ा से भिलाई नगर स्टेशन तक ट्रेन से यात्रा करते थे। आने वाले वर्षों में, उन्हें एमईआरएस और फिर प्लांट गैराज में स्थानांतरित कर दिया गया और आखिरकार, वह पिछले साल 2023 में गैराज से सेवानिवृत्त हो गए। श्री विनय बताते हैं कि मैंने अपनी स्कूली शिक्षा बीएसपी स्कूल से की, जहां मुझे प्रतिष्ठित पीएम ट्रॉफी छात्रवृत्ति प्राप्त हुई थी। अंततः मैंने एनआईटी रायपुर से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की और वर्ष 2018 में सेल में शामिल हो गया। वे कहते हैं “आज मैं जो कुछ भी हूं, वह मुझे मेरे परिवेश ने बनाया है और सेल ने मेरे जीवन पर जो प्रभाव डाला है, उसके लिए मैं सदैव ऋणी रहूंगा”। इसलिए, मैं कह सकता हूं कि “बाकी सभी की तुलना में मेरे जीवन में सेल का योगदान थोड़ा अधिक है।”

सीटीवाईएम के लिए इस वर्ष का विषय “सस्टेनेबल फ्यूचर थ्रू ईएसजी एडॉप्शनः चैलेंजेस एंड वे फॉरवर्ड इन सेल” था। टीम ने दिए गए विषय पर रिपोर्ट लिखने के लिए कठोर अध्ययन किया। टीम ने अपने सभी संसाधनों का भरपूर उपयोग किया। टीम ने पत्रिकाएँ पढ़ीं, विशेषज्ञों की चर्चाएँ देखीं और कई वरिष्ठ प्रबंधन के कई जानकर व्यक्तियों के साथ साक्षात्कार किये। उन्होंने कई ऑनलाइन प्लेटफार्मों पर ईएसजी पर पाठ्यक्रम भी लिया। एक सर्वेक्षण तैयार किया गया और फिर उचित विश्लेषण किया गया ताकि संवेदनशील क्षेत्रों का पता लगाया जा सके। खूब विचार-मंथन और विचार-विमर्श करने पर टीम को कुछ समाधान मिले। टीम का प्राथमिक फोकस, कार्यान्वयन योग्य समाधान प्रदान करना और उन्हें लागू करने के लिए संसाधनों की तात्कालिक उपलब्धता के अनुसार फिल्टर करना था। टीम ने इसे बीएसपी स्तर पर प्रस्तुत किया गया, जहां उन्होंने “डीआईसी ट्रॉफी” प्राप्त की और सेल स्तर पर चले गए। सेल स्तर पर भी टीम को सीटीवाईएम 2023-24 के लिए विजेता घोषित किया गया।

विजेता टीम के सदस्यों ने बताया कि हमें बीएमडीसी प्रबंधन और उनके कर्मचारियों से अपार समर्थन मिला, जिन्होंने हमें चैबीसों घंटे सभी संभावित संसाधन उपलब्ध कराए। “बीएसपी की विजयी होने की मानसिकता हमारी संस्कृति में गहराई से अंतर्निहित है।” हमारे पिछले विजेता भी हमारे मार्गदर्शन और रचनात्मक आलोचना हेतु हमेशा तैयार रहते थे और हर संभव तरीके से हम में से सर्वश्रेष्ठ प्राप्त करने में हमारी सहायता करते थे। इस पूरी प्रक्रिया के एक कम्प्लीट सायकल को पूर्ण करने में लगभग 7-8 महीने लगते हैं। पैरामीटर हर समय काम में आते हैं। ऐसे स्तरों तक पहुँचने के लिए बहुत कड़ी मेहनत, समर्पण, धैर्य और त्याग की आवश्यकता होती है। टीम वर्क का मतलब, एक साथ एकजुट होकर सभी कठिनाइयों का सामना करना है। लेकिन अंततः, यह किसी भी कीमत पर जीतने की आपकी इच्छाशक्ति पर निर्भर करता है। उच्चतम स्तर पर जीतना हमें बहुत खुशी देता है और हमें उम्मीद है कि हम भविष्य में भी अपने संगठन को और अधिक गौरव दिलाने में सक्षम होंगे।

कहते हैं ना “विथ ग्रेट पॉवर कम्स ग्रेट रिस्पॉन्सिबिलीटी”, जैसे जैसे हम इस नवीन सशक्त यात्रा की शुरुआत कर रहे हैं, हमें लगता है कि युवा प्रबंधकों को मार्गदर्शन और प्रेरित करना हमारी जिम्मेदारी है। ठीक वैसे ही जैसे हमें हमारे वरिष्ठों द्वारा हमें निर्देशित किया गया था। हम आशा करते हैं कि विजेता बनने की यह संस्कृति आने वाले वर्षों तक इसी तरह बरकरार रहेगी।

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