खनन कंपनियों के निकाय भारतीय खनिज उद्योग महासंघ (फिमी) ने बॉक्साइट पर निर्यात शुल्क वापस लेने की मांग की है। फिमी ने कहा है कि इस कदम से निचले ग्रेड के खनिज संसाधन का महत्तम इस्तेमाल किया जा सकेगा और बंद बॉक्साइट खदानों को फिर से खोला जा सकेगा। साथ ही इससे रोजगार के अवसर सृजित होंगे और विदेशी मुद्रा अर्जित होगी। बॉक्साइट एल्युमीनियम का प्रमुख अयस्क है, इसलिए यह एल्युमीनियम उत्पादकों के लिए आवश्यक कच्चा माल है।

फिमी ने वित्त मंत्रालय से अपने बजट पूर्व प्रस्तावों में कहा, “बॉक्साइट पर 15 प्रतिशत का निर्यात शुल्क भारतीय गैर-धातुकर्म बॉक्साइट उत्पादकों और निर्यातकों को काफी नुकसान पहुंचा रहा है। इसलिए बॉक्साइट से निर्यात शुल्क को पूरी तरह से वापस लिया जाना चाहिए।” फिमी ने कहा कि भारत बॉक्साइट के मामले में न केवल आत्मनिर्भर है बल्कि यह अंतरराष्ट्रीय बॉक्साइट बाजार में एक प्रमुख खिलाड़ी बनने की क्षमता रखता है।

घरेलू एल्युमिना और एल्युमीनियम उत्पादकों की अपनी खुद की (कैप्टिव) खानें हैं या वे देश के पूर्वी और मध्य हिस्सों में स्थित खानों से अपनी आवश्यकता को पूरा करते हैं, जिसमें संयंत्र-ग्रेड बॉक्साइट होता है। दूसरी ओर, देश के पश्चिमी तट (कम एल्युमिना सामग्री और उच्च सिलिका वाला) पर होने वाले बॉक्साइट तकनीकी रूप से उपयुक्त नहीं है और देश में रिफाइनर / स्मेल्टर के लिए आर्थिक रूप से व्यवहार्य नहीं बैठता। हालांकि, इस तरह के गैर- संयंत्र ग्रेड बॉक्साइट को कुछ देशों में खनिज की कमी की वजह से खरीदा जाता है।

फिमी ने कहा कि देश के पश्चिमी तट से गैर-संयंत्र ग्रेड बॉक्साइट के निर्यात से 50,000 श्रमिकों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार मिलता है। फिमी ने कहा कि भारत में निचले ग्रेड के बॉक्साइट की उपलब्धता घरेलू मांग से काफी अधिक है। इसका महाराष्ट्र और गुजरात के तटीय क्षेत्रों से निर्यात किया जाता है। उद्योग निकाय ने कहा कि बॉक्साइट पर 15 प्रतिशत के निर्यात शुल्क से इस अयस्क का उत्पादन और निर्यात बुरी तरह प्रभावित हो रहा है।

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