कोयला खदानों में डिजिटलीकरण में तेजी लाने के लिए एक उल्लेखनीय कदम के रूप में आईआईटी रूड़की ( IIT Roorkee) के रोबोटिक्स शोधकर्ताओं (robotics expert) की एक टीम ने छत्तीसगढ़ स्थित कोल इंडिया की सहायक कंपनी साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड (SECL) की ओपनकास्ट खदानों में परीक्षण किया।

आईआईटी रूड़की की टीम वर्तमान में अपनी परियोजना “वास्तविक समय निगरानी, ​​​​खतरों और संवेदनशीलता मूल्यांकन हेतु ओपन कास्ट माइनफील्ड निगरानी के लिए लागू एक बुद्धिमान मानव रहित हवाई वाहन के डिजाइन और विकास” के तहत कोयले खदानों के लिए ड्रोन (Drones) विकसित करने पर काम कर रही है।

इस परियोजना के तहत टीम ने ओपन कास्ट खदानों में स्टॉक माप से संबंधित समस्याओं को दूर करने के लिए एक ड्रोन विकसित करने पर काम करना आरंभ कर दिया है। विकसित होने के बाद ड्रोन किसी भी सर्वेक्षणकर्ता को खदान के किसी भी हिस्से में ड्रोन भेजकर कोयले के स्टॉक या ओवरबर्डेन को मापने में मदद करेगा। आई -हब फाउंडेशन फॉर कोबोटिक्स (आईएचएफसी) – आईआईटी दिल्ली का टेक्नोलॉजी इनोवेशन हब इस परियोजना के लिए वित्त पोषण एजेंसी के रूप में काम करेगा।

वर्तमान में, ओवरबर्डन और कोयला स्टॉक को मापने के लिए 3डी टीएलएस प्रौद्योगिकी का उपयोग किया जाता है, जिसकी अपनी कुछ सीमाएं हैं। ड्रोन के उपयोग से इस सीमा को दूर किया जा सकता है।

एसईसीएल की खदानें ड्रोन के परीक्षण और विकास के लिए ग्राउंड-ज़ीरो होंगी

एसईसीएल अनुसंधान टीम को कोयला खदानों पर तकनीकी विशेषज्ञता प्रदान करने में मदद करेगा ताकि उन्हें परियोजना के लिए महत्वपूर्ण डेटा मिल सके। रोबोटिक्स विशेषज्ञ प्रोफेसर डॉ. पुष्पराज मणि पाठक, पोस्ट-डॉक्टोरल शोधकर्ता डॉ. आशीष गुप्ता और स्नातकोत्तर के छात्र ज़ूनून अली शाबान की टीम ने हाल ही में हसदेव क्षेत्र के राजनगर कोयला खदान में ड्रोन से संबंधित परीक्षण किए और एसईसीएल का जमुना कोतमा क्षेत्र के अमादंड खदान का दौरा किया। टीम ने कोयला खदानों में ड्रोन तकनीक के उपयोग के लिए अपने संस्थान की प्रयोगशाला में विनिर्मित ड्रोन का भी सफल परीक्षण किया।

खदानों में उत्पादन, उत्पादकता, लॉजिस्टिक्स और सुरक्षा बढ़ाने के लिए ड्रोन का उपयोग

ड्रोन के उपयोग से खदानों में उत्पादन और उत्पादकता को बढ़ावा देने और महत्वपूर्ण लॉजिस्टिक्स सहायता प्रदान करने में मदद मिलेगी। ड्रोन के माध्यम से ढलानों की निगरानी और विस्फोट से खदानों के सुरक्षा पहलू में भी अत्यधिक सुधार किया जा सकता है।

ड्रोन ओपन कास्ट खदानों में विस्फोट के दौरान उड़ने वाले चट्टानों और अन्य सामग्रियों की सटीक निगरानी करने में मदद कर सकते हैं ताकि दुर्घटनाओं को कम करने के लिए कदम उठाए जा सकें और इस मामले में गलत दावों से निपटा जा सके।

अगर किसी तरह की वस्तु फेस मशीनरी तक पहुंचानी है तो इसके लिए भी ड्रोन का इस्तेमाल किया जा सकता है। किसी दुर्घटना की स्थिति में, फेस पर काम करने वाले श्रमबल तक दवा या खाद्य वस्तुओं को भी पहुंचाया जा सकता है।

कोल इंडिया के “प्रोजेक्ट डिजीकोल” के तहत एसईसीएल में खदानों को डिजिटल बनाने के लिए कई कदम उठाए जा रहे हैं

कोल इंडिया के “प्रोजेक्ट डिजिटल” के तहत, एसईसीएल ने अपनी मेगा परियोजनाओं, गेवरा, दीपका और कुसमुंडा में कई डिजिटल समाधान प्रस्तुत किए हैं। श्रमिक सुरक्षा, खदान सर्वेक्षण, सीखने और प्रबंधन को बढ़ाने के उद्देश्य से इन समाधानों में शामिल हैं:

  • ” सुरक्षा कवच ” नामक एक एसओएस उपकरण खदानों में श्रमिकों को आपातकालीन स्थिति में मदद के लिए कॉल करने की अनुमति देता है।
  • खदानों का सर्वेक्षण करने और जोखिम-ग्रस्त क्षेत्रों में जाने की आवश्यकता के बिना खदान स्थलाकृति का विश्लेषण करने के लिए ड्रोन का उपयोग करना।
  • नवीनतम उद्योग रुझानों पर मॉड्यूल के साथ सभी के लिए प्रौद्योगिकी समर्थित लर्निंग प्लेटफॉर्म।
  • भूमि अधिग्रहण प्रबंधन प्रणाली (एलएएमएस), एंड-टू-एंड वर्कफ़्लो प्रबंधन, भूमि रिकॉर्ड के डिजिटल सत्यापन, प्रक्रिया मानचित्र और आर एंड आर और क्षतिपूर्ति योजनाओं के सृजन के लिए एक डिजिटल समाधान।
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