नई दिल्ली, 10 नवम्बर। केंद्रीय कोयला, खान और संसदीय कार्य मंत्री प्रल्हाद जोशी ने आज इंदौर, मध्य प्रदेश में कोयला मंत्रालय की संसदीय सलाहकार समिति की बैठक की अध्यक्षता की, जिसमें कोयला क्षेत्र के कोयला खदान बंद करने से जुड़े उभरते मुद्दे  “सभी के लिए न्यायसंगत परिवर्तन” विषय पर चर्चा की गई।

बैठक में संसदीय सलाहकार समिति के सदस्य चुन्नी लाल साहू, जुआल ओराम, कृपाल तुमाने, संतोष कुमार, सुरेश पुजारी, अजय प्रताप सिंह बघेल, खीरू महतो और प्रशांत नंदा ने भाग लिया और कोयला खदान बंद करना – सभी के लिए न्यायसंगत परिवर्तन के बारे में अपने बहुमूल्य सुझाव और इनपुट दिए। सीएमडी (सीआईएल), सीएमडी (एनएलसीआईएल) और सीआईएल की सहायक कंपनियों के सीएमडी भी बैठक में उपस्थित थे।

अपने उद्घाटन भाषण में मंत्री प्रल्हाद जोशी ने समिति के सदस्यों को बताया कि कोयले से इतर, ऊर्जा परिवर्तन पर पूरी दुनिया जोर दे रही है। हालांकि, ऊर्जा का एक किफायती स्रोत होने के कारण, कोयला भारत के लिए बहुत महत्‍व रखता है, जो उभरती अर्थव्यवस्था की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने का प्रमुख स्रोत है। कोयला देश की प्राथमिक ऊर्जा आवश्यकता का 51 प्रतिशत से अधिक पूरा करता है और बिजली उत्पादन में लगभग 73 प्रतिशत का योगदान देता है। इसके अलावा, कोयला स्टील, स्पंज आयरन, एल्युमीनियम, सीमेंट, कागज, ईंट आदि के उत्पादन के महत्वपूर्ण घटकों में से एक है। देश में कोयले की मांग अभी शीर्ष पर नहीं पहुंची है और यह 2040 व इससे आगे तक ऊर्जा मिश्रण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता रहेगा। इस प्रकार, भारत में निकट भविष्य में कोयले से पृथक कोई बदलाव नहीं होगा।

कोयला सचिव अमृत लाल मीणा ने बताया कि 2015 में पेरिस में आयोजित संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (सीओपी 21) में हुई जलवायु घोषणाओं में शामिल होने के बाद ‘न्यायसंगत परिवर्तन’ वाक्यांश प्रमुखता से सामने आया। इस बात पर जोर दिया गया कि कार्बन गहन ऊर्जा स्रोत से कम कार्बन उत्सर्जन वाले ऊर्जा स्रोत में बदलाव, उस स्रोत पर निर्भर लोगों के लिए कठोर नहीं होना चाहिए। यह उम्मीद की जाती है कि ऐसे लोगों को बदलाव के कुप्रभाव के लिए मुआवजा दिया जाना चाहिए और/या उन्हें फिर से प्रशिक्षित किया जाना चाहिए तथा उन्हें कुछ अन्य कम कार्बन उत्सर्जन वाली आर्थिक गतिविधियों में पुन: नियोजित किया जाना चाहिए।

बैठक के दौरान, कोयला मंत्रालय के संयुक्त सचिव द्वारा एक प्रस्तुति दी गई, जिसमें यह बताया गया कि हालांकि कोयला उपयोग बंद करने की तत्काल कोई चुनौती नहीं है, लेकिन कोयला कंपनियों को पहले से ही बंद हो चुकी खदानों और निकट भविष्य में बंद होने वाली कोयला का प्रबंधन करना होगा। खदानों को बंद करने का काम, न्यायसंगत सिद्धांतों के अनुरूप ऐसे तरीके से किया जाना चाहिए, जिससे भूमि और बुनियादी ढांचे की संपत्ति का पुनः उपयोग किया जा सके, श्रमिकों और अनौपचारिक रूप से नियोजित लोगों की आजीविका को बनाए रखा जा सके और स्कूलों, अस्पतालों, सामुदायिक भवनों आदि सामाजिक अवसंरचना के समर्थन को जारी रखा जा सके।

मौजूदा खदान बंद करने के दिशा-निर्देश अभी भी विकसित हो रहे हैं। ये दिशानिर्देश मुख्य रूप से खदान बंद करने के भौतिक और पर्यावरणीय पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करते हैं और खदान बंद करने और भूमि व अवसंरचना संपत्ति के फिर से उपयोग से जुड़े सामाजिक पहलुओं का ठीक से समाधान नहीं करते हैं। इसलिए, न्यायसंगत सिद्धांतों के अनुरूप, खदान बंद करने के लिए व्यापक, समान व स्थाई रूपरेखा विकसित करने की आवश्यकता है तथा एक उचित संस्थागत व्यवस्था के विकास के साथ-साथ खदान बंद करने के हर पहलू को कवर करने वाले वित्त पोषण तंत्र के विकास की भी जरूरत है।

चर्चा के दौरान समिति के सदस्यों ने कोयला खदान बंद करने की दिशा में मंत्रालय और कोयला/लिग्नाइट सार्वजनिक उपक्रमों द्वारा किए जा रहे प्रयासों की सराहना की। सदस्यों ने कोयला खदान बंद करने के फ्रेमवर्क को और विकसित करने के लिए कोयला क्षेत्र द्वारा की गई पहलों को स्वीकार करते हुए आशा व्यक्त की कि सर्वोत्तम वैश्विक प्रथाओं को अपनाना और खदानों को बंद करने के लिए न्यायसंगत बदलाव के सिद्धांत को लागू करना; सामाजिक समानता और न्याय के लिए एक बड़ा कदम होगा। यह फ्रेमवर्क, कोयला खदानों के बंद होने की स्थिति में प्रबंधन के क्षमता निर्माण की सुविधा भी प्रदान करेगा। खदान बंद होने की स्थिति, भारत के ऊर्जा मिश्रण में होने वाले बदलाव के कारण लंबी अवधि में सामने आ सकती है। समिति के सदस्यों द्वारा यह सुझाव दिया गया कि पर्यावरण संरक्षण, कोयला खदान बंद करना, सामाजिक कल्याण और उत्पादकता जैसे मुद्दों पर कोयला कंपनियों द्वारा जन प्रतिनिधियों के साथ और ज्यादा अवसरों पर परामर्श किया जाना चाहिए।

अपने समापन भाषण में मंत्री प्रल्हाद जोशी ने समिति के सदस्यों को उनकी सक्रिय भागीदारी के लिए धन्यवाद दिया और आश्वासन दिया कि मंत्रालय और कोयला/लिग्नाइट सार्वजनिक उपक्रमों द्वारा उनके मूल्यवान सुझावों को अपनाया जाएगा।

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