रायपुर (IP News). मोदी सरकार द्वारा बनाए गए तीन कृषि विरोधी कानूनों के खिलाफ राष्ट्रव्यापी आन्दोलन के तहत छत्तीसगढ़ बचाओ आन्दोलन और उसके घटक संगठनों के द्वारा प्रदेश के कई जिलों, ब्लॉकों और गांवों में चक्का जाम, धरना-प्रदर्शन और मोदी सरकार का पुतला दहन किया जायेगा।

छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन से जुड़े सुदेश टीकम, संजय पराते, विजय भाई, आलोक शुक्ला, रमाकांत बंजारे, नंदकुमार कश्यप आदि ने आरोप लगाया है कि केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए तीनो कृषि कानून, किसानों पर आजादी के बाद सबसे बड़ा हमला है। स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के अनुसार सी-2 लागत का डेढ़ गुना समर्थन मूल्य देने का वादा करके सत्ता में आई मोदी सरकार अब न्यूनतम समर्थन मूल्य की प्रणाली को ही खत्म करने जा रही हैस उसने अडानी और अम्बानी जैसे बड़े कार्पोरेटों को निजी मंडियों की स्थापना की छूट दे दी है, जिससे वह किसानों की फसल को अपने मनमाफिक कीमत पर खरीदकर उसे लूट सके और बाद में इसी अनाज को दबाकर और बाजार में कृत्रिम संकट पैदा करके उपभोक्ता से भी अधिकतम मुनाफा कमा सके।

सीबीए का मानना है कि ये तीनों कानून मिलकर देश की सार्वजनिक वितरण प्रणाली को भी तहस-नहस कर देंगे, जिससे किसानों की बदहाली के साथ गरीब, भूमिहीन, शहरी मजदूरों और मध्यमवर्गीय परिवारों के सामने भुखमरी के हालात पैदा हो जाएंगे, क्योंकि देश में अनाज भंडार पर नियंत्रण कार्पोरेटों का होगा और इससे खाद्यान्न सुरक्षा खत्म हो जाएगी। उनका आरोप है कि ठेका खेती देश के किसानों को कार्पोरेटों का गुलाम बना देगी।

उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा इन तीनों कानूनों को निष्प्रभावी करने का वादा किया गया था, परन्तु सिर्फ निजी मंडियों पर सरकारी नियंत्रण हेतु मंडी कानून में संशोधन में किए गए और समर्थन मूल्य, कांट्रेक्ट फार्मिंग और आवश्यक वस्तु कानून के बारे में सोची-समझी चुप्पी साध ली गई है। मंडी संशोधन कानून किसी भी रूप में किसानों के हितों की रक्षा नहीं करता। छत्तीसगढ़ बचाओ आन्दोलन का मानना हैं कि राज्य सरकार को इन सभी मुद्दों पर अपना रुख स्पष्ट करना चाहिए और एक सर्वसमावेशी कानून बनाना चाहिए।

छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के नेताओं ने 10 नवम्बर से सहकारी समितियों के माध्यम से प्रदेश में धान की खरीदी शुरू करने और मंडियों में समर्थन मूल्य सुनिश्चित करने की मांग की है और कहा है कि 5 नवम्बर के आंदोलन में इन मांगों पर भी प्रदेश के किसान अपनी आवाज बुलंद करेंगे। उन्होंने प्रदेश के किसानों से किसानों से अपील की है कि बड़ी संख्या में सड़कों पर उतरकर केंद्र और प्रदेश सरकार की किसान विरोधी नीतियों की खिलाफत करें, क्योंकि यह आंदोलन किसानों के जीवन की रक्षा के साथ ही देश की संप्रभुता और खाद्यान्न आत्मनिर्भरता की रक्षा करने का भी आंदोलन है। उन्होंने प्रदेश के सभी तबकों से किसानों के देशव्यापी आंदोलन को समर्थन देने की भी अपील की है।

ये संगठन होंगे आंदोलन में शामिल

(छत्तीसगढ़ बचाओ आन्दोलन की ओर से सुदेश टीकम, संजय पराते, विजय भाई, आलोक शुक्ला, रमाकांत बंजारे, नंदकुमार कश्यप, जिला किसान संघ (राजनांदगांव), छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा (मजदूर कार्यकर्त्ता समिति), छत्तीसगढ़ किसान सभा, हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति (कोरबा, सरगुजा), किसान संघर्ष समिति (कुरूद), आदिवासी महासभा (बस्तर), दलित-आदिवासी मजदूर संगठन (रायगढ़), दलित-आदिवासी मंच (सोनाखान), भारत जन आन्दोलन, गाँव गणराज्य अभियान (सरगुजा), आदिवासी जन वन अधिकार मंच (कांकेर), मेहनतकश आवास अधिकार संघ (रायपुर), जशपुर जिला संघर्ष समिति, राष्ट्रीय आदिवासी विकास परिषद् (छत्तीसगढ़ इकाई), ऊर्जाधानी भू-विस्थापित समिति, जशपुर विकास समिति, पेंड्रावन जलाशय बचाओ किसान संघर्ष समिति (बंगोली, रायपुर), उद्योग प्रभावित किसान संघ (बलोदा बाजार), रिछारिया केम्पेन, आदिवासी एकता महासभा (आदिवासी अधिकार राष्ट्रीय मंच), छत्तीसगढ़ प्रदेश किसान सभा, छत्तीसगढ़ किसान महासभा, परलकोट किसान कल्याण संघ, अखिल भारतीय किसान-खेत मजदूर संगठन, वनाधिकार संघर्ष समिति (धमतरी), आंचलिक किसान सभा (सरिया), राष्ट्रीय किसान मोर्चा (रायगढ़)।

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